चलो साथ सबका निभाते चलें हम।
दोषियों को सजा भी दिलाते चलें हम।।
इंसानियत जिनके दिल में बची है।
उन्हीं से सदा दिल मिलाते चलें हम।।
तकल्लुफ की बातें बहुत हो चुकी हैं ।
अब तो सही गीत गाते चलें हम।।
आदर्श हमने बनाए हैं कितने।
दिल में उन्हें ही बसाते चलें हम।।
लफ्फाजियों का शोर सदा सुनते रहे हम।
उसे सामने से हटाते चलें हम।।
धर्म के इतने सारे पताकों को देखो।
मानव को मानव बनाते चलें हम।।
सत्य का ग्राफ गिरकर कहाँ आ चुका है।
चलो आज उसको उठाते चलें हम।।
शहीदों ने सब कुछ बताया है हमको।
यादों में उनको बसाते चलें हम।।
जो भी यहाँ ला रहे हैं गुलामी।
मिट्टी में उनको मिलाते चलें हम।।
वतन है हमारा हमीं हैं वतन के।
हरदम यही गीत गाते चलें हम।।
बाहर से जो आ रहे हैं कमाने।
उन पर नजर को गड़ाते चलें हम।।
कैसे हो सबकुछ यहाँ पर सुरक्षित।
बच्चों को यह सब पढ़ाते चलें हम।।
इतिहास हमको सदा मोड़ देता ।
चलो कुछ नए की तरफ अब चलें हम।।
वतन की बुलंदी ही सपने में देखें।
उसको हकीकत में लाते चलें हम।।
अंधेरा बहुत है बहुत है अंधेरा।
अंधेरे में दीपक जलाते चलें हम।।
कवियों की महफिल सजी है मुकम्मल।
चलो उसमें गंगा नहाने चलें हम।।
चलो साथ सबका निभाते चलें हम।
दोषियों को सजा भी दिलाते चलें हम।।
अन्वेषी