बदल रहे इस दौर में, हर बच्चा बुद्धिमान।
जरुरत बूढ़ों की नहीं, उनका क्या अहसान।।
फुर्र फुर्र सी जिंदगी, फुर्सत का क्या काम।
पास सभी के हो गए, इतने सारे काम।।
भाग दौड़ की सड़क पर, लगते लम्बे जाम।
नहीं बची पगडंडियां, जिन पर था आराम।।
बाग़ बगीचे उजड़ है, नहीं किसी को ध्यान।
समझ रहे है आज सब, दो गमलों में शान।।
चिट्टी पत्री बंद सब, उनका क्या है काम।
आते दिनभर अब बहुत,व्हाट्सऐप्प पर पैगाम।।
रिश्तों पर अब जम गए, अकड़ ऐंठ अहसान।
सगे सम्बन्धी है नहीं, एकल सब इंसान।।
सुविधाओं के ढेर पर, बैठा हर इंसान।
फिर भी भीतर से बहुत, सौरभ सब परेशान।।
-डॉ सत्यवान सौरभ