अब तक

बहुत जी चुका खामोशी में
अब मुझे पुकार लो।
एक गीत गा कर मेरे
इस मनहूस सन्नाटे को तोड़ दो।
मैं गा नहीं सकता
केवल कलम चलाता हूं
अपने अन्दर के ज़ख्मों का
उलझा ताना-बाना संवारता हूं।
अपनों का साथ नहीं मिला मुझे
स्नेह, सम्मान नहीं मिला मुझे
प्यासा हूं निश्छल प्रीत पाने को
तरसा हूं साथ-साथ ज़ीने मरने की
कसमें निभाने को।
नहीं दी जगह किसी ने
अपने आसमां के नीचे
मैंने भी कोशिश की थी
कभी एक घर बसाने की।
तिल -तिल उखड़ा था जड़ों से अपनी
अब तक अपने से ही जुड़ा नहीं ।
समेट रहा हूं मनोबल अपना
पुनः खड़ा होने के लिए।
एक कंधा विश्वास भरा
मिलेगा मुझे इस जहां में?
परिंदा उड़ता अकेला आसमां में
ग़र कोई उड़ान ना भरे साथ उसके
तो वह कैसे पंख कतर ले अपने
रखनी होगी कौशिश जारी
शायद साथ किसी का मिल जाए।

बेला विरदी।

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