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कहती हमसे राखियाँ

 

चिठ्ठी लाई गाँव से, जब राखी उपहार।
आँसूं छलके आँख से, देख बहन का प्यार।।

रक्षा बंधन प्रेम का, हृदय का त्योहार।
इसमें बसती द्रौपदी, है कान्हा का प्यार।।

कहती हमसे राखियाँ, तुच्छ है सभी स्वार्थ।
बहनों की शुभकामना, तुम्हें करे सिद्धार्थ।।

भाई-बहना नेह के,रिश्तों के आधार।
इस धागे के सामने, सब कुछ है बेकार।।

बहना मूरत प्यार की, मांगे ये वरदान।
भाई को यश-बल मिले, लोग करे गुणगान।।

सब बहनों पर यदि करे, मन से सच्चा गर्व।
होता तब ही मानिये, रक्षा बंधन पर्व।।

— सत्यवान ‘सौरभ’

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