ख्वाहिशें जो दिल में छिपी है,
कुछ बिखरे सपने हैं,
जो वक्त की धूल में दबे हैं!
चाहा था बुंलदियों को छूना,
पर पंखों में थकान आ गई!
आसमान को मुट्ठी में करना चाहा,
पर आसमां भी मुझ से दूर हो गया!
रिश्तों को मेने बहुत संजोना चाहा,
पर दूरियां बढ़ती ही चली गई!
हर खुशी में ग़म छिपा है,
पर अब आंसू भी आंखों में सूख गए!
किताब लिखना चाहता हूं मां के नाम,
खाली पन्नो में कुछ लिखना चाहता हूं!
पंक्ति को यादों संजोना चाहता हूं!
शायद शब्द भी गुमनाम हो गए हैं!
आखिर ख्वाहिशे अभी जिंदा है
दिल के किसी कोने में धड़क रही है
कभी दुख,कभी आह बनकर बरस रही है!
यह तो जीवन की ख्वाहिशे है,
कभी खत्म हुई है ना ही कभी होगी,
ख्वाहिशे जीवन को नई उम्मीद जरूर देगी!
(गोविन्द सूचिक अदनासा जिला -हरदा)
नर्मदापुरम संभाग मध्यप्रदेश