गीत 

डॉ तबस्सुम जहां

जितना घोर अंधेरा होगा
उतना ही उजियारा होगा

लाख चुभें कांटे अब पग में
भले खुभे कांटे अब वक्ष में
भस्म करे अब अग्नि क्षण-क्षण
देखेंगे, अब आगे जो होगा
जितना घोर अंधेरा होगा
उतना ही उजियारा होगा

चाहे अब चन्द्रमा फट जाए
चाहें समस्त तारे मिट जाएँ
नक्षत्र टूटें बिखरे माला-सी
आकाशगंगा जलें ज्वाला-सी
देखेंगे, अब आगे जो होगा
जितना घोर अंधेरा होगा
उतना ही उजियारा होगा

टूटा है ह्रदय कुछ कम नहीं
दुर्बल किंचित हुए हम नहीं
क्षणिक अचेत थे पर मरे नहीं
हम कभी विघ्नों से डरे नहीं
देखेंगे, अब आगे जो होगा
जितना घोर अंधेरा होगा
उतना ही उजियारा होगा

जीवन में नित उत्थान हो,
दुखों का अवसान हो,
प्रेम प्यार सबको हम बांटें,
न किसी पे ये अहसान हो ,
देखेंगे अब आगे जो होगा,
जितना घोर अंधेरा होगा,
उतना ही उजियारा होगा।

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