मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर: माउंट आबू में भरी सड़क पर भालू

सटायर: माउंट आबू में भरी सड़क पर भालू

 

-डाॅ रवीन्द्र कुमार

सोचो कितनी गुरबत के दौर से गुजर रहा है मेरे भारत महान का क्या फ्लोरा-फौना क्या इंसान। जिसे देखो वो सड़क का रुख कर रहा है। कभी स्टूडेंट, कभी टीचर, कभी वर्कर कभी, किसान। हद तो तब हो गयी जब माउंट आबू में भालू भी सड़क पर आन पहुंचे। यूं देखा जाए तो पता नहीं चल सका ये भालू लोग क्यूँ सड़क पर उतरे उनकी मांग क्या है। मगर मोटा-मोटा अन्दाजा तो लगाया ही जा सकता है। जिस कारण से इंसान सड़क पर उतर रहे हैं उन्ही कुछ कारणों के चलते ये बेचारे भालू भी जंगल छोड़ आबादी में आन घुसे हैं। वे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सड़क पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं। अतः कृपया उनको इंसान या टीचर समझ लाठी चार्ज ना किया जाये। ना ही उन पर कोई आँसू गैस छोड़ी जाये। उनका ये चार सदस्यीय शिष्ट मण्डल मिलने आया है। उनसे वार्ता की जाये। उनकी समस्याओं को ध्यान से सुना जाये। कई बार उनकी बात सुनने से ही दिल हल्का हो जाता है। कहते हैं आधी समस्या तो सुनने मात्र से ही खत्म हो जाती है।

हो सकता है उन की मांग हो कि आजकल शहद पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल रहा है। आदमी जंगल में घुस-घुस कर उनके हिस्से का शहद भी उठा लिए जा रहा है। और तो और नकली शहद बना रहा है। कुछ भी मिला-मिला कर बेच रहा है। उसे दुष्ट 100% शुद्ध भी बता रहा है। कभी गुड मिला देता है। कहीं चीनी, तो कहीं कैमिकल। अब ऐसे में हम भोले भाले भालू कहाँ जाएँ ? हमसे ना तो मिलावट होती है ना हम मिलावटी खाते हैं। सरकार हमारे लिये भी कुछ करे।

इससे तो पहले ठीक था कमसेकम मदारी हमें दो टाइम की रोटी तो देता था। खुद उसकी भी रोज़ी-रोटी चलती थी और हमारी भी देखभाल हो जाती है। हँसी-खुशी ज़िन्दगी चल रही थी। तभी ये पशु अधिकार वालों की नज़र लग गई। उन्हें हममें अपने लिये संभावनाएं दिखने लगीं। हम उन एनिमल रक्षा समिति वालों से पूछते हैं तुम ये जो एन.जी. ओ. खोल के हमारे नाम पर मिलने वाली ग्रांट डकार रहे हो, हमारे लिए वास्तव में क्या किया है तुमने ? बस ले दे कर लिप सर्विस। ऐसे अब नहीं चलेगा। अब हमें भी सड़क पर उतरना पड़ेगा। पब्लिक का ध्यान अपनी हालत पर लाना होगा। ये हाल केवल हमारा ही नहीं है। हमारे जैसे और बहुत से हमारे भाई बहन हैं जो ऐसी ही हालत से गुजर रहे हैं क्या बंदर, क्या चील, क्या गिद्ध, क्या कुत्ते, क्या नीलगाय, क्या हिरण। यहाँ तक कि शेर चीते भी आदमी के लालच से अछूते नहीं रह गए है। अब हम कहाँ जाएँ ? ना जाने कौन ये उड़ा देता है कि हमारे नाखून, हमारे पंजे दवा के काम आते हैं। बस पड़ गया आदमी हमारे पीछे। आदमी को कौन समझाये भैया हमारे नाखून भी तुम्हारे जैसे ही हैं इनमें कोई मेडिसिनल क्वालिटी नहीं हैं। दूसरे ये ओझा और तंत्र मंत्र वाले लोग भी आदमी को हमारे पीछे छोड़ देते हैं। भालू का ये ले आओ, वो ले आओ। बंदर का ये ले आओ, वो ले आओ। बस आदमी पागल माफिक हमारे पीछे पीछे। बंदर फिर हनुमान जी के भक्तों के चलते कुछ केले वेले खाते रहते हैं मगर हम भालू जो यूं तो जामवंत के वंशज हैं हमें देखने वाला कोई नहीं। भैया ऐसे में प्लीज हमारे मदारी हमें वापिस दे दो। हम खुश हैं। वो हमे अपनी फेमिली की तरह रखते रहे हैं। ये ना जाने किसने उड़ा दिया कि हम पर अत्याचार हो रहा है कोई अत्याचार वात्याचार नहीं। बस एन.जी.ओ. को अपने पैसे बनाने हैं। देश विदेश से ग्रांट लेनी होती है तो कहानी डालते हैं।

सोचो हम खुशहाल होते तो हम सड़क पर क्यूँ उतरते ?आजकल हमारे खाने के वांदे हैं । हमे या तो आप चिड़िया घर में रखो या मदारी के पास। जंगल में अब हमारा गुजारा नहीं है। वहाँ तो आदमी ने कॉलोनियाँ और प्लाॅट काटने शुरु कर दिये हैं। प्लॉट पर प्लॉट बेच रहा है। हमारे जंगल के अंग्रेज़ी में रंगीन ब्रोशर बना लिये हैं। ठीक है मगर हमारा क्या ? हमारे घरों के लिए भी तो सोचो ? और हाँ जल्दी सोचो ! नहीं तो अगर हम अपनी पर आ गए तो इन्सानों का जीना दूभर कर देंगे ये बात गांठ बांध लो।

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