सामना संवाददाता / लखनऊ
वर्तमान में एनकाउंटर को लेकर पूरे देश में चर्चाओं का जोर चल रहा है। उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर से लेकर महाराष्ट्र के बदलापुर तक एनकाउंटर को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यूपी में २० मार्च, २०१७ से लेकर ५ सितंबर, २०२४ के बीच १२,९६४ एनकाउंटर हुए हैं। इनमें से २०७ अपराधियों को मार गिराया गया है। मुठभेड़ में पुलिस के भी १७ लोगों को जान गंवानी पड़ी है। औसतन हर १३ दिन में एक अपराधी को एनकाउंटर में मौत की नींद सुलाया गया है। उत्तर प्रदेश में सात सालों से योगी आदित्यनाथ की सरकार है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार, अप्रैल, २०१६ के बाद से २०२२ तक औसतन हर तीन दिन पर एक एनकाउंटर को अंजाम दिया गया। कोरोना काल के दौरान मुठभेड़ के मामले कम देखे गए। २०१९-२० में यह ११२ था, जो २०२०-२१ में घटकर ८२ रह गया। हालांकि, इसके बाद एनकाउंटर में ६९.५ फीसदी यानी १३९ केस की बढ़ोतरी हुई।
यूपी में ‘ऑपरेशन लंगड़ा’
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में गैर सरकारी मिशन, जिसे ऑपरेशन लंगड़ा कहा जाता है, इसमें एनकाउंटर को बड़ी संख्या में अंजाम दिया गया। ८,४७२ एनकाउंटर्स में से ३,३०० अपराधी घायल हुए। यानी मुठभेड़ के दौरान इनके पैरों में गोली मारी गई। बाद में एनकाउंटर को शूटआउट, खल्लास जैसे शब्दों से भी नवाजा जाने लगा।