सामना संवाददाता / नासिक
सिद्ध पिपरी स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नासिक परिसर में जनजातीय गौरव दिवस भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर स्वागत भाषण देते हुए व्याकरण विभाग के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के संयोजक डॉ. इंद्र कुमार मीणा ने कहा कि भारत सरकार ने देश की आजादी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद तथा संघर्ष करते हुए बलिदान देने वाले आदिवासी जनजातीय समुदाय के विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर 15 नवंबर 2021 को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि विरसा मुंडा शिक्षा, आर्थिक स्थिति, सामाजिक न्याय व्यवस्था में हो रहे भेदभाव के विरुद्ध ब्रिटेन सरकार के सामने विद्रोह कर दिया था, जिसके लिए उनको जेल भी भेजा गया था। देश की आजादी तथा जनजातीय समुदाय की स्वतंत्रता के लिए उलगुलान नामक एक क्रांति किया था, जिसके कारण आदिवासी जनजातीय समुदाय उन्हें भगवान की उपाधि देकर पूजा करने लगे थे। डॉ. मीणा ने विश्वविद्यालय में हो रहे नीतिगत भेदभापूर्ण व्यवहार को लेकर दुख व्यक्त किया तथा भेदभाव पूर्ण नीति को दूर कर समानता के साथ व्यवहार करने के लिए सलाह भी दिया। इस अवसर पर देश की आजादी में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उलगुलान विद्रोह करने पर विरसा मुंडा के ऊपर लघु फिल्म भी दिखाई गई। इस कार्यक्रम अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में महाराष्ट्र प्रांत के वनवासी कल्याण आश्रम के सचिव भास्कर खांडवी ने कहा कि देश की पहचान सभ्यता और संस्कृति के कारण होती है। विरसा मुंडा ने भी अपने अंदर दैवीय गुण तथा आत्म चरित्र निर्माण कर राष्ट्र एवम आदिवासी जनजातीय समुदाय के लिए भगवान बन गए। विरसा मुंडा पर अनगिनत अत्याचार अंग्रेजों ने किया था, लेकिन भगवान विरसा मुंडा अपने उद्देश्य से पीछे नहीं हटे और अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए। देश में 746 तरह के आदिवासी जनजातीय समुदाय हैं, किंतु भारत के इतिहास में आदिवासी जनजातीय समुदाय के क्रांतिकारियों का गजट सूची में नाम दर्ज नहीं था, जबकि अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए आदिवासी जनजातीय समुदाय भी बलिदान दिए थे। वर्तमान केंद्र सरकार ने प्रथम बार 15 नवंबर 2021 को विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर भारत के इतिहास के गजट में आदिवासी जनजातीय समुदाय को शामिल कर गौरव बढ़ाया। भास्कर खांडवी ने यह भी बताया कि विरसा मुंडा को जन्म से ही शिक्षा, आयुर्वेद चिकित्सा संबंधी ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा थी। विरसा मुंडा ने जंगली आदिवासी जनजातीय समुदाय का विकास कैसे हो, उसके लिए आजीवन संघर्ष करते हुए अपने जीवन को अपने समाज तथा देश की आजादी के लिए बलिदान कर दिए। उन्होंने यह भी बताया कि आदिवासी जनजातीय समुदाय में माता-पिता की देवी-देवता की तरह पूजा की जाती है। किसी भी आदिवासी जनजातीय समुदाय के माता-पिता वृद्ध होने पर वृद्धा आश्रम में नहीं भेजे जाते हैं। इस अवसर पर परिसर के प्रभारी निदेशक डॉ. विद्याधर प्रभल ने कहा कि आदिवासी जनजातीय समाज इस देश को अपना जीवन दान दिया है। भगवान श्रीराम ने आदिवासी जनजातीय समुदाय की माता सबरी का जूठा बेर खाकर पूरे देश और समाज को यह संदेश दिया कि प्रेम और भक्ति भाव द्वारा समाज में समानता लाया जा सकता है। किसी के साथ भेदभाव समाजिक न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है। श्रीहनुमान जी भी आदिवासी समाज में रहकर पूरे विश्व के लिए पूजनीय बन गए। वैसे ही विरसा मुंडा ने अपने जीवन को देश और समाज कल्याण के लिए बलिदान कर पूज्यनीय स्थान को प्राप्त कर लिया था, जिसके कारण उन्हें आज हम सभी याद कर रहे हैं। वर्तमान में भेदभाव का कोई स्थान नहीं है, क्योंकि अपनी योग्यता एवम कर्तव्य के बल पर द्रोपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बन गईं। इस अवसर पर धन्यवाद ज्ञापन व्याकरण विभाग के डॉ. कार्तिक भागवत और मंच संचालन व्याकरण विभाग के डॉ. राहुल शर्मा ने किया। कार्यक्रम के अवसर पर सभी शिक्षक, कर्मचारी और छात्र उपस्थित थे।