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५ साल में २,१६० बसें गईं कबाड़ में बेड़े में मात्र ३७ नई बसें हुईं शामिल! … मुंबईकरों और बेस्ट को सहनी पड़ रही बसों के कमी की मार

– २,१२६ बसों पर भी विवाद जारी, आरटीआई ने उजागर की अव्यवस्था
सामना संवाददाता / मुंबई
कभी मुंबई की लाइफलाइन माने जाने वाली बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) सेवा आज गंभीर संकट से जूझ रही है। आरटीआई से खुलासा हुआ है कि पिछले पांच वर्षों में बेस्ट की २,१६० बसें कबाड़ में दे दी गर्इं, जबकि केवल ३७ नई बसें शामिल की गईं। इस बदइंतजामी ने मुंबईकरों को सड़कों पर भटकने को मजबूर कर दिया है।
अगस्त २०२४ तक बेस्ट के पास केवल १,०६१ बसें ही बची थीं, जो उसकी खुद की हैं। इसके अलावा लीज पर ली गई २,१२६ बसों पर भी विवाद जारी है। यह स्थिति तब है, जब मुंबई की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और सार्वजनिक परिवहन पर निर्भरता अधिक हो रही है।
हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर लंबी लाइनों और बस स्टॉप पर इंतजार करते सैकड़ों यात्रियों के वीडियो वायरल हुए हैं। लोग घंटों बस का इंतजार करने को मजबूर हैं, खासतौर पर पीक आवर्स में। भीड़भाड़ के कारण बसें यात्रियों को चढ़ने की अनुमति भी नहीं दे पा रही हैं, जिससे दफ्तर जाने वाले कर्मचारी, स्कूल के बच्चे और जरूरी काम पर जाने वाले लोग परेशान हैं।
गरीबों की मुश्किलें बढ़ीं
बेस्ट की सेवाएं गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए जीवन रेखा हैं। बसों की भारी कमी ने इन वर्गों पर सबसे अधिक असर डाला है। यात्रियों को अब महंगे विकल्प जैसे ऑटो और टैक्सी का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और बिगड़ रही है।
प्रबंधन की विफलता
इस संकट के लिए बेस्ट का कुप्रबंधन और सरकार की नीतियां जिम्मेदार मानी जा रही हैं। यंग व्हिसलब्लोवर्स फाउंडेशन के कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे ने बताया, ‘बेस्ट प्रबंधन ने बसों के बेड़े को अपग्रेड करने के बजाय अपनी सेवाओं को गिरने दिया। वहीं सरकार आम आदमी की आवश्यकताओं को नजरअंदाज कर महंगी परियोजनाओं जैसे १३,००० करोड़ रुपए की लागत वाली कोस्टल रोड पर ध्यान दे रही है। इसका नतीजा यह है कि महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों समेत आम मुंबईकर सस्ती और भरोसेमंद परिवहन सेवाओं से वंचित हो गए हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि अनुबंध पर काम करने वाले ड्राइवरों को बेहतर प्रशिक्षण और स्थायी नौकरी देने की जरूरत है, ताकि सड़क दुर्घटनाओं में कमी आए।

बेस्ट की गिरती साख
एक समय पर मुंबई की पहचान मानी जाने वाली बेस्ट आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट मुंबई की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को पूरी तरह से चरमरा सकता है।

 

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