सामना संवाददाता / मुंबई
मी लॉर्ड, मुझे बच्चा नहीं चाहिए। यह गुहार लेकर एक ११ साल की लड़की मुंबई हाई कोर्ट पहुंची है। लड़की ३० महीने की प्रेग्नेंट है। हाई कोर्ट ने पूरे मामले को सुनने के बाद ऐतिहासिक पैâसला देते हुए लड़की को एबॉर्शन की इजाजत दे दी।
मिली जानकारी के अनुसार, इस नाबालिग बच्ची के साथ रेप किया गया था, जिसके बाद वह प्रेग्नेंट हो गई। हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़की को गर्भपात कराने की अनुमति देने के साथ ही भ्रूण के ब्लड और टिश्यू को सुरक्षित रखने का आदेश दिया है, ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर बच्चे का डीएनए या कोई और अन्य मेडिकल टेस्ट किया जा सके। बता दें कि २० सप्ताह से ज्यादा का गर्भ होने पर अबॉर्शन के लिए कोर्ट की मंजूरी अनिवार्य है। हाई कोर्ट ने इस ३० सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी। जस्टिस शर्मिला देशमुख और जस्टिस जितेंद्र जैन की वेकेशनल बेंच ने कहा कि सरकारी जेजे अस्पताल में गर्भपात की प्रक्रिया की जाएगी। नाबालिग लड़की ने प्रेग्नेंसी को समाप्त करने की अनुमति मांगने के लिए अपने पिता के माध्यम से हाई कोर्ट का रुख किया था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों के तहत २० सप्ताह से अधिक की प्रेग्नेंसी को समाप्त करने के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता होती है।
कोर्ट ने क्या कहा?
याचिका के अनुसार, लड़की यौन उत्पीड़न की शिकार है और भारतीय न्याय संहिता के पॉक्सो एक्ट के तहत एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। कोर्ट ने कहा कि वह संविधान के तहत, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में निर्धारित आकस्मिक परिस्थितियों में २० सप्ताह की गर्भावस्था को मेडिकली तरीके से समाप्त करने की अनुमति दे सकता है। कोर्ट ने कहा, ‘याचिकाकर्ता एक नाबालिग लड़की है, जो यौन उत्पीड़न की शिकार है इसलिए याचिकाकर्ता को प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति दी जाती है।’