केंद्र सरकार देश को विश्व गुरु बनाने का सपना दिखा रही है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि वो देश विश्व गुरु कैसे बन सकता है, जिस देश की महिलाएं पिछड़ी हों। सरकार दावे कर रही है कि हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट कहती है कि भारत में देखभाल की जिम्मेदारियों के कारण ५३ प्रतिशत महिलाएं श्रम बल से बाहर हैं और वहां देखभाल अर्थव्यवस्था में और निवेश की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को देखभाल अर्थव्यवस्था में और अधिक निवेश की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) में अवैतनिक देखभालकर्ताओं की श्रम शक्ति भागीदारी और कार्यबल में लैंगिक समानता का समर्थन करने के लिए। श्रम बल से बाहर रहने वाली महिलाओं का उच्च अनुपात भारत में कम महिला श्रम बल भागीदारी दर पर चिंताओं का विषय है, जिनमें से अधिकांश अवैतनिक घरेलू काम में कार्यरत हैं।
रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि भारत में ९७.८ प्रतिशत महिलाएं और ९१.४ प्रतिशत पुरुष व्यक्तिगत या पारिवारिक कारणों से श्रम बल से बाहर हैं। २०२३-२४ के लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, भारत में ३६.७ प्रतिशत महिलाएं और १९.४ प्रतिशत कार्यबल घरेलू उद्यमों में अवैतनिक काम में लगे हुए हैं, जबकि कुल श्रमिकों में ३७.५ प्रतिशत महिलाएं और १८.३ प्रतिशत श्रमिक हैं।
बता दें कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा पहले किए गए समय उपयोग सर्वेक्षण २०१९ में भी महिलाओं का बड़ा हिस्सा घरेलू काम और देखभाल जिम्मेदारियों जैसी अवैतनिक गतिविधियों पर समय बर्बाद करते हुए दिखाया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में ६ वर्ष और उससे अधिक उम्र की लगभग ८१ प्रतिशत महिलाएं अवैतनिक घरेलू सेवाओं पर प्रतिदिन पांच घंटे से अधिक समय बिताती हैं, जिसमें १५-२९ वर्ष के आयु वर्ग की हिस्सेदारी ८५.१ प्रतिशत और ९२ प्रतिशत है।