–सुप्रीम कोर्ट की रोक ने मोदी सरकार की मंशाओं पर फेरा पानी
-फैसले से कुछ दिन पहले ही छापे गए थे भारी भरकम बॉन्ड
-आरटीआई से हुआ चौंकानेवाला खुलासा
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने गुमनाम राजनीतिक चंदे के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को हाल ही में रद्द किया है, सुप्रीम कोर्ट का पैâसला सही समय पर आने से लगभग ८ हजार करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खराब हो गए हैं, जिससे केंद्र की भाजपा सरकार की मंशाओं पर पानी फिर गया है। सरकार आगामी दिनों में बड़ी संख्या में इलेक्टोरल बॉन्ड लाने की तैयारी में थी। सरकार ने एक करोड़ रुपए मूल्य के ८,३५० बॉन्ड छापे थे। एक आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है। जानकारी के अनुसार, कुल मिलाकर साल २०१८ में जब योजना शुरू की गई थी, तब से अब तक सरकार ने ३५,६६० करोड़ रुपए के बॉन्ड मुद्रित किए, जिनमें एक करोड़ रुपए के ३३,००० और १० लाख रुपए के २६,६०० बॉन्ड शामिल थे। आरटीआई जवाब के अनुसार, चुनावी बॉन्ड के कमीशन और मुद्रण पर सरकार ने १३.९४ करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि इस योजना के तहत अधिकृत वित्तीय संस्थान भारतीय स्टेट बैंक ने बॉन्ड बिक्री के लिए कमीशन के रूप में जीएसटी सहित १२.०४ करोड़ रुपए का शुल्क लिया। जानकारी से पता चलता है कि दानदाताओं और राजनीतिक दलों से चंदा बहुत कम आया है। अदालत ने इस पर पूरी जानकारी को १३ मार्च तक प्रकाशित करने का निर्देश सरकार को दिया है।
भाजपा के खाते में आधे से ज्यादा चंदा
उल्लेखनीय है कि १५ फरवरी को लोकसभा चुनावों की अधिसूचना जारी होने से बामुश्किल कुछ हफ्ते पहले एक ऐतिहासिक पैâसले में सीजेआई डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसे लागू करने के लिए कानूनों में किए गए बदलाव असंवैधानिक हैं। सरकार की ओर से दलील दी गई कि इसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना और राजनीतिक फंडिंग में काले धन पर अंकुश लगाना था, जिस पर अदालत सहमत नहीं हुई। भाजपा के खाते में आधे से ज्यादा चंदा मार्च २०१८ और जनवरी २०२४ के बीच चुनावी बॉन्ड की बिक्री के जरिए मिली सामूहिक राशि १६,५१८ करोड़ रुपए थी।