मुख्यपृष्ठअपराधगड़े मुर्दे : नरबलि-लालच और अंधविश्वास का खतरनाक कॉकटेल!

गड़े मुर्दे : नरबलि-लालच और अंधविश्वास का खतरनाक कॉकटेल!

जीतेंद्र दीक्षित

ये बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इक्कीसवीं सदी में रहते हुए भी देश की आबादी का एक तबका अंधविश्वास की गिरफ्त में है। ये कहानी इस सदी के पहले साल यानी कि २००१ की है, जिसमें लालच और अंधविश्वास के कॉकटेल ने एक शख्स को अपराधी बना दिया और उसने एक मासूम की जान ले ली।…लेकिन उस अपराधी को सलाखों के पीछे पहुंचाया मृत बच्चे के छोटे भाई की गवाही ने।
मामला कल्याण के पास मानपाडा का है। मुझे आरोपी का नाम नहीं याद आ रहा लेकिन ये कहानी मैंने उस वक्त एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के लिए कवर की थी, जिसमें मैं काम करता था। साल २००१ में मानपाडा में रहनेवाले एक उत्तर भारतीय परिवार का ग्यारह साल का लड़का गायब हो जाता है। उसके मां-बाप आसपास के इलाकों में उसे ढूंढ़ने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। अड़ोस-पड़ोस के लोग भी बच्चे को खोजने में मां-बाप का साथ देते हैं। जब बच्चा नहीं मिलता तो मानपाडा पुलिस थाने में उसकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराते हैं।
गुमशुदा बच्चे का एक छोटा भाई भी था, जिसकी उम्र पांच साल थी। पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के अगले दिन जब उसने अपनी मां को लगातार रोते हुए देखा तो उसने मां से उसका कारण पूछा। मां ने बताया कि उसका भाई नहीं मिल रहा है इसलिए वो परेशान है। तब उस लड़के ने घर के बाहर खड़े एक शख्स की ओर इशारे करते हुए कहा कि भाई तो इन अंकल के साथ गया है। उसने अपनी मां को बताया कि दो तीन–दिन पहले उसने अपने भाई को उस शख्स के साथ जाते हुए देखा था। जिस शख्स की ओर बच्चे ने इशारा किया वो इस परिवार के पड़ोस में ही रहता था और गुमशुदा बच्चे की तलाश में मदद कर रहा था। वो परिवार के साथ मानपाडा पुलिस थाने शिकायत दर्ज कराने भी गया था। उस दिन भी वो ये पता करने आया था कि क्या पुलिस की तरफ से बच्चे के बारे में कोई जानकारी मिली।
महिला ने अपने दूसरे बेटे की ओर से बतायी गई बात अपने पति से साझा की। इसके बाद पति-पत्नी पुलिस थाने पहुंचे और उन्होंने बच्चे की ओर से कही गई बात की जानकारी पुलिस को दी। उस वक्त मानपाडा पुलिस थाने के प्रभारी शमशेर खान पठान थे, जिनका पिछले साल ही निधन हुआ। पठान ने तुरंत उस शख्स को हिरासत में ले लिया। इसके बाद उन्होंने गुमशुदा बच्चे के छोटे भाई को बुलाया और उस शख्स के सामने गोद में बिठाकर प्यार से उससे पूछा कि बड़ा भाई कहा है। इस पर बच्चे ने अपनी उंगली से इशारा करते हुए कहा कि इन अंकल के साथ गया है। पांच साल के उस बच्चे की ओर से दी गई गवाही के बाद पुलिस ने उस शख्स के साथ सख्त पूछताछ की। पुलिस की मार खाने के बाद उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया और पूरी कहानी उगल दी। दरअसल, वो शख्स बेरोजगार चल रहा था। उसे जुए की लत लग गई थी और सिर पर काफी कर्जा चढ़ गया था। ऐसे में एक दिन लोकल ट्रेन से सफर करते हुए उसे खिड़की के पास एक बंगाली तांत्रिक का विज्ञापन चिपका हुआ दिखा। विज्ञापन में दावा किया गया था कि तंत्र-मंत्र के जरिए वो तांत्रिक लोगों की समस्याएं हल कर सकता है और उन्हें गड़ा धन भी मिलवा कर दे सकता है। ये शख्स उस तांत्रिक के पास बांद्रा-पश्चिम में उसके दफ्तर पर पहुंच गया और बताया कि वो कंगाल हो चुका है और उसे पैसों की जरूरत है। तांत्रिक ने कहा कि वो उसे गड़ा धन दिलवा देगा लेकिन उसे एक मोटी फीस देनी होगी और साथ में एक नरबलि भी देनी होगी। बलि किसी बच्चे की चढायी जानी चाहिये।
उस शख्स ने जैसे-तैसे पैसे का इंतजाम करके तांत्रिक की फीस चुका दी और नरबलि के लिए किसी बच्चे की तलाश करने लगा। उसकी नजर पड़ोस में रहने वाले परिवार के ग्यारह साल के बच्चे पर पड़ी। बच्चा उसे पहचानता था इसलिए उसका अपहरण करना आसान था। एक शाम कुछ खिलाने के बहाने उसने बच्चे को अपने पास बुलाया और फिर उसका अपहरण करके मानपाडा के करीब एक पहाड़ी पर ले गया। उसे जाते वक्त बच्चे के छोटे भाई ने देख लिया था। जंगल में तांत्रिक की बतायी गयी प्रक्रिया के मुताबिक, उस शख्स ने निर्ममता से बच्चे की बलि दे दी। पुलिस की टीम बाद में आरोपी को उस ठिकाने पर ले गई और बच्चे का शव बरामद किया। इसके बाद नरबलि के लिए उकसाने वाले तांत्रिक को भी बांद्रा से गिरफ्तार कर लिया गया। तांत्रिक की गिरफ्तारी के बाद बांद्रा में स्थानीय लोगों ने गुस्से में आकर उसके दफ्तर में तोड़-फोड़ कर दी। कई साल बाद जब एक दिन मैंने शमशेर पठान से उस केस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि छोटे बच्चे की वजह से आरोपी की गिरफ्तारी तो हो गयी थी लेकिन अदालत में पुलिस का मामला टिक नहीं पाया और कुछ साल जेल में रहने के बाद आरोपी छूट गया।

 

 

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