भूल हो गई

नासमझी में भूल हो गई।
हवा आज प्रतिकूल हो गई।।
यह जो पागल हुई सियासत।
अपने में मशगूल हो गई।।
बची खुची जो मर्यादा थी।
वह तो मिट्टी धूल हो गई।।
जीवन की गाड़ी पर देखो।
बेकारी तिरशूल हो गई।।
नैतिकता की बेअकली तो।
मौसम के अनुकूल हो गई।।
सच्चाई की हरकत देखो।
वह कौड़ी के तीन हो गई।।
रात अंधेरी दुखदाई भी।
अब कितनी गमगीन हो गई।।
लफ्फाजी भी बारीकी से।
अब कितनी मेहीन हो गई ।।
आश्वासन के नीचे दबकर।।
जनता कितनी दीन हो गई।।
नासमझी में भूल हो गई।
हवा आज प्रतिकूल हो गई।।
अन्वेषी

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