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इस्लाम की बात : ये ‘खुला’ क्या बला है

सैयद सलमान
मुंबई

गत दिनों देश की मशहूर टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक के अलगाव की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरीं। जहां आग होगी धुआं वहीं से उठता है। पिछले वर्ष से ही खबरें गश्त कर रही थीं कि मिर्जा और मलिक के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। लेकिन नवंबर की शुरुआत में खुद सानिया ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट के जरिए संदेश दिया था कि शोएब के साथ सब कुछ ठीक चल रहा है और दोनों के रिश्ते में कोई खटास नहीं है। इससे पहले सानिया और शोएब अपने बेटे के जन्मदिन पर दुबई में साथ नजर आए थे। लेकिन इस साल जनवरी के अंत से पहले ही सानिया और शोएब के अलगाव पर मुहर लग गई। खबर तब सुर्खियों में आई, जब शोएब मलिक और पाकिस्तानी अभिनेत्री सना जावेद ने अपनी शादी की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए दी। तभी यह साफ हो गया कि शोएब और सानिया मिर्जा के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं। हालांकि, तलाक की खबरों के बीच सानिया मिर्जा के पिता इमरान मिर्जा ने बयान जारी किया कि यह तलाक नहीं ‘खुला’ था। इस पर कई गैर मुस्लिम भाइयों को समझ ही नहीं आया कि यह ‘खुला’ क्या बला है और ‘तलाक’ और ‘खुला’ के बीच का अंतर क्या है।
इस्लामी शरीयत के अनुसार पति-पत्नी के अलगाव के कई रूप हैं। इस्लाम में विवाह को एक पुरुष और एक महिला के बीच कानूनी अनुबंध के रूप में देखा जाता है। दोनों पक्षों को अनुबंध रद्द करने का भी अधिकार होता है। विवाह संपन्न होने के लिए, दोनों पक्षों का वयस्क या स्वस्थ दिमाग का होना जरूरी होता है। मतलब, वही व्यक्ति वयस्क है जिसके पास परिपक्व दिमाग और विकसित शरीर है, जिसकी अपनी इच्छा और सहमति है। यही नियम महिलाओं पर भी लागू होता है, यानी जो महिला अनुबंध करने की क्षमता रखती है, वह अनुबंध रद्द भी कर सकती है। लेकिन आम मुसलमानों में अलगाव के लिए सबसे आसान तरीका है ‘तलाक’। यह अधिकार पुरुषों के पास होता है। यानी अलग होने के लिए पुरुष महिला को एकतरफा तलाक दे देता है। पहले ‘ट्रिपल तलाक’ आम था, लेकिन नया कानून बन जाने के बाद इस पर रोक लगा दी गई है। अब तलाक असल शरई तरीके से तीन चरणों में दिया जा सकता है। इसमें तीसरे तलाक से पहले सुलह की पूरी गुंजाइश बनी रहती है। लेकिन जब पति तीसरी बार तलाक की घोषणा करता है तो विवाह अपरिवर्तनीय रूप से खत्म हो जाता है। शरीया कानून के अनुसार, पत्नी को भी यह अधिकार है कि वह जुल्म, ज्यादती के खिलाफ अपनी मर्जी से अलग हो सकती है। एक पत्नी अपने पति को केवल तभी तलाक दे सकती है जब उसे उसके पति द्वारा अतीत में तलाक देने के लिए अधिकृत किया गया हो। यानी निकाह के वक्त निकाहनामे में दोनों की मंजूरी से यह शर्त जोड़ी गई हो। पति पूरी तरह या सशर्त, अस्थायी या स्थायी रूप से इसे अपनी पत्नी को अधिकृत कर सकता है।
इस्लाम के पवित्र धर्मग्रंथ कुरआन का मूल रुख यह है कि मुस्लिम महिलाएं सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण मुस्लिम हैं और धार्मिक रूप से पुरुषों के बराबर हैं। इस्लाम महिलाओं और पुरुषों को एक-दूसरे के ‘संरक्षक’ के रूप में संदर्भित भी करता है। जहां तक ‘खुला’ का मामला है, ‘खुला’ इस्लाम में महिलाओं को दिया गया एक ऐसा अधिकार है, जो उन्हें पति से अलग होने का विकल्प देता है। यानी पति-पत्नी में अलगाव के लिए ‘खुला’ वो तरीका है जिसमें मुस्लिम महिला अपने पति को एकतरफा तलाक दे सकती है, क्योंकि यह उसका अधिकार है। तलाक में पुरुष अपनी पत्नी से अलग होने का पैâसला करता है, वहीं दूसरी ओर ‘खुला’ में पत्नी अपने पति से अलग होने का पैâसला करती है। इस्लामी विवाह और तलाक के संदर्भ में ‘खुला’ उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके माध्यम से एक पत्नी विवाह बंधन को रद्द करना चाहती है और अपने पति से तलाक लेना चाहती है। इस्लाम में ‘खुला’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक महिला मेहर (महर) वापस करके या अपने कुछ अधिकारों को छोड़कर अपने पति से तलाक मांगती है। ऐसा करके वह हमेशा के जुल्म, ज्यादती से बरी हो जाती है। लेकिन मुसलमानों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि तलाक हो या ‘खुला’ यह रिश्ते खत्म करने का अंतिम पर्याय होना चाहिए। कुरआन पति-पत्नी के बीच बातचीत से या उनके परिवारों के मध्यस्थों के माध्यम से मेल-मिलाप और सुलह को बढ़ावा देता है। हालांकि, जब रिश्ते बोझ बन जाएं, तो अलगाव सौहार्दपूर्वक किया जाना चाहिए। इस प्रकार, कुरआन तलाक को स्वीकार्य तो मानता है लेकिन प्रशंसनीय कतई नहीं।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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