मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : विदाई समारोह...

संपादकीय : विदाई समारोह…

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को संसद में चुनाव से पहले अंतरिम बजट पेश करने का काम पूरा कर लिया। सीधे शब्दों में कहें तो इस बजट में कोई ठोस समाधान नजर नहीं आ रहा है। वित्त मंत्री ने इस अंतरिम बजट को ऐसे पेश किया जैसे कोई विदाई भाषण हो, ‘हम तो जाते अपने गांव, हमारी सबको राम राम राम।’ चूंकि लोकसभा के आम चुनाव सिर पर हैं, इसलिए बजट के जरिए जनता की जेब से टैक्स के रूप में कुछ भी लेने की रत्ती भर संभावना नहीं थी। इस एक उपकार के अलावा इस अंतरिम बजट से देश को क्या मिला, यह शोध का विषय होना चाहिए। इस बजट में न तो देश की आर्थिक हकीकत की झलक दिखी और न ही देश को आर्थिक विकास के रास्ते पर वैâसे ले जाया जाए इसकी सटीक दिशा वित्त मंत्री ने संसद के सामने पेश की। साधारण तौर पर बजट में आंकड़ों की जो बमबारी देखने को मिलती है, वह भी इस बजट में कहीं नहीं दिखी। यह ऐसा बजट है जो देश की आम जनता, गरीबों, मेहनतकशों और मध्यमवर्गीय मजदूरों को कुछ नहीं देता। देश की अर्थव्यवस्था की अच्छी या बुरी तस्वीर खींचने के चक्कर में पड़े बिना, वित्त मंत्री ने यह बताने की कोशिश की कि २०१४ में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने पिछले १० वर्षों में क्या किया है। जब नरेंद्र मोदी ने काम शुरू किया तो उनके सामने क्या चुनौतियां थीं और मोदी के इस देश में आने के बाद ही इस देश में किस तरह जनहित के कार्य शुरू हुए यह बताते हुए वह बार-बार मोदी नाम का जाप करती हुई दिखाई दीं। यदि एक वाक्य में कहा जाए तो बजट में निर्मला सीतारमण का भाषण एक वित्त मंत्री की तरह कम और अपनी सरकार की आरती उतारते हुए स्तुति पाठ करती ज्यादा लग रही थीं। दुनिया की महाशक्तियों और प्रभावशाली देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में आज हम कहां खड़े हैं? देश में बेरोजगारी का प्रतिशत रिकॉर्ड स्तर पर क्यों पहुंच गया? डॉलर के मुकाबले पिछले १० वर्षों में रुपया कितना कमजोर हुआ है? अगर वाकई मोदी के नेतृत्व में देश में औद्योगिक और आर्थिक क्रांति हुई है तो पिछले १० साल में हजारों उद्योग क्यों बंद हो गए और सरकार ने अपने व्यापारिक मित्रों के लाखों करोड़ के कर्ज क्यों माफ कर दिए? ऐसे एक से एक कई सवाल हैं। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में वर्तमान समय की भयावह हकीकत से बड़ी सफाई से बचते हुए देशवासियों को भविष्य के सपनों में रमाने की कोशिश की। ‘आप २०४७ में देखेंगे कि भारत वैâसे एक विकसित राष्ट्र बनने जा रहा है!’ वित्त मंत्री ने खास ‘विश्व गुरु’ के अंदाज में ऐसी स्वप्निल छाप उकेरी। यानी आज कहां, वैâसे और किस तरह हालत खराब है, इसका जिक्र नहीं करना है; लेकिन लगातार कल-परसों के सुखद सपने दिखाते रहना यह कुछ इस तरह है! सच छुपाकर सपने बेचनेवाली सरकार का यह ‘उल्लू बनाविंग’ फॉर्मूला अब जनता भली-भांति जान चुकी है। इसलिए अगले चुनाव में…
‘तू इधर-उधर की बात न कर,
ये बता कि काफिला क्यूं लुटा,
मुझे रहजनों से गिला नहीं,
तेरी रहबरी का सवाल है…’
ऐसा सवाल सरकार से देश की जनता पूछे बिना नहीं रहेगी। ‘करदाताओं ने देश को भर-भर कर दिया है, आयकर के माध्यम से पिछले दस वर्षों में सरकारी राजस्व तीन गुना हो गया है, जीएसटी कर संग्रह १.६६ लाख करोड़ रुपए हो गया है, ऐसा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में गर्व से कहा, तो आखिर यह पैसा कहां जा रहा है? इसके अलावा सरकार के खजाने में चारों ओर से पैसा आने के बावजूद सरकार पिछले १० वर्षों में उधार लेने के उच्चतम स्तर पर क्यों पहुंच गई? क्या इस सरकार के पास इसका जवाब है? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में साहसिक बयान दिया कि वह गरीब, महिला, युवा और किसान इन चार जातियों के लिए काम करेंगी। क्या इसका मतलब यह है कि पिछले दस वर्षों से यह सरकार केवल अपने सूट-बूट वाले मित्रों के लिए ही काम कर रही थी? जब महंगाई ने गरीबों का जीना असहनीय बना दिया था सरकार बड़े-बड़े उद्योगपतियों के कर्ज माफ करती रही, जब महिला कुश्ती खिलाड़ियों पर अत्याचार हो रहा था व मणिपुर में महिलाओं की इज्जत की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही थीं यह सरकार खुली आंखों से देखती रही। तीन काले कानून के खिलाफ लड़ते हुए देश के ७५० किसान शहीद हो गए तब भी सरकार के माथे पर शिकन तक नहीं आई। २०२२ तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करनेवाली सरकार ने इसके विपरीत कृषि वस्तुओं की उत्पादन लागत दोगुनी कर दी। उसी सरकार का अब गरीब, महिला, युवा और किसानों के प्रति चिंता उमड़कर आना, इसका सिर्फ एक ही अर्थ है यानी सरकार के विदाई समारोह का समय नजदीक आ गया है। वित्त मंत्री का भाषण तो यही कहता है!

अन्य समाचार