मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : मंदिर में घुसपैठ क्यों?

तड़का : मंदिर में घुसपैठ क्यों?

कविता श्रीवास्तव

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही अपार भीड़ उमड़ रही है। यह अच्छी बात है। सदियों बाद अपनी जन्मभूमि पर रामलला के स्थापित होने पर यह निश्चित ही था। लेकिन कुछ दलों ने लोगों को दर्शन के नाम पर अयोध्या की सैर कराना भी शुरू किया है। राजनीतिक लाभ के लिए मतदाताओं को लुभाने का यह उनका तरीका है। इसी तरह रामलला के दर्शन के लिए लखनऊ से अन्य समुदाय के कुछ लोग भी दर्शन करने पहुंचे। सामाजिक सौहार्द्र की दृष्टि से यह ठीक है। लेकिन कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या मंदिर में हर किसी को जाने देना चाहिए? क्या मंदिर का उपयोग पिकनिक या पर्यटन के रूप में भी किया जा सकता है? हाल ही में तमिलनाडु के पलानी मंदिर से जुड़े एक मामले पर मद्रास हाई कोर्ट ने साफ किया है कि मंदिर पिकनिक मनाने की जगह नहीं है, जहां सभी धर्म के लोगों को प्रवेश की अनुमति हो। अदालत ने साफ किया कि पलानी के मुरूगन स्वामी मंदिर के ध्वजस्तंभ से आगे गैर-हिंदुओं को जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार बोर्ड लगाए कि पलानी मंदिर में गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है। अदालत ने बताया कि मंदिर संविधान के अनुच्छेद १५ के अंतर्गत नहीं आते हैं इसलिए वहां गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध सही है। अदालत ने अधिकारियों को रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुसार मंदिर का रखरखाव करने का भी निर्देश दिया। हमें ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर पूजा स्थल होते हैं। वहां देवी-देवताओं के रूप में हमारे आराध्य स्थापित होते हैं। वहां वेद पुराण, शास्त्र आधारित पद्धति से पूजा-पाठ होते हैं। यह हिंदू धर्म के सिद्धांतों और परंपराओं के अनुसार होता है। यह धर्म और आस्था से जुड़ा बेहद निजी मामला है। इसकी वैधानिक स्वतंत्रता भी है। इसमें दखलअंदाजी या हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं है। मंदिर देवस्थान है, जहां अपने आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन होता है। वहां मूर्ति रखकर पूजा-अर्चना होती है। मंदिर को भगवान का घर भी समझा जाता है। वहां भगवान शयन करते हैं। स्नान करते हैं। भोग लगाते हैं। विश्राम करते हैं। देवालय, जिनालय, गुरुद्वारा आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं। इन परिसरों का उपयोग पिकनिक स्थल या पर्यटन स्थल के रूप में नहीं होना चाहिए। मंदिर परिसर को श्रद्धापूर्वक और धार्मिक रीति के अनुसार बनाए रखा जाना चाहिए। यदि किसी की आस्था और विश्वास मंदिर और उसमें स्थापित भगवान में नहीं है तो उसे मंदिर में आने की क्या आवश्यकता है? मंदिर धार्मिकता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। जहां भक्तजन भगवान से संबंधित भावनाओं को व्यक्त करते हैं और भगवान का आशीर्वाद पाने आते हैं। मंदिरों में होने वाली पूजा-अर्चना, आरती और पर्व-त्योहार धार्मिक भावना का विषय है। सैर-सपाटे के लिए तो दुनिया भर में ढेर सारे ठिकाने हैं।

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