मुख्यपृष्ठस्तंभउड़न छू : मक्कार दुकानदार

उड़न छू : मक्कार दुकानदार

अजय भट्टाचार्य

खरीदारी के मामले में महिलाएं ज्यादा समझदार मानी जाती हैं। हमने, आपने अक्सर देखा होगा कि लड़कियां या महिलाएं सामान लेने जाती हैं तो हजार रुपए के सामान की दो सौ रुपए से बहस शुरू करती हैं और आश्चर्य तब होता है, जब वह सामान उन्हें मिल भी जाता है। इसके विपरीत वही लड़के या पुरुष जब सामान लेने जाते हैं तो भाव-ताव से बचते हैं। अगर थोडा बहुत मोलभाव करेंगे पहले तो हजार रुपए की वस्तु का मूल्य ९५० रुपए या ९०० रुपए लगाते हैं। कुछ मर्द ज्यादा होशियार हुए तो ८०० रुपए तक कीमत लगाने पर भी उस कीमत में सौदा नहीं कर पाते हैं। आखिर क्यों? क्यों पुरुष मोलभाव में पिछड़ जाते हैं। केवल सामान की खरीद-फरोख्त ही नहीं, बल्कि नौकरी के मामले में भी पुरुष ज्यादा सौदेबाजी नहीं करते और जो ठीकठाक लगे उतने वेतन / मजदूरी में काम करने लग जाते हैं। मोलभाव के इस पौरुषेय मनोविज्ञान को समझना चाहिए।
पुरूषों में एक खास भावना होती है, जिसे अंग्रेजी में फोमो अभिव्यक्ति (FOMO EXPRESSION) FOMO यानी `Fear of Moving Out’ अर्थात बाहर होने का डर। सिर्फ बाजार ही नहीं, निजी संबंधों के स्तर पर भी हर मर्द इसी बाहर होने/खो देने के डर से ग्रसित रहता है। इसे और साधारण भाषा में इस प्रकार समझें कि जब किसी पुरुष को कोई चीज पसंद आ जाती है तो उसे लगता है कि उससे बेहतर हमें कोई नहीं मिल सकता है। इसी डर को फोमो कहते हैं, जिसे अनुभवी दुकानदार तुरंत पकड़ लेता है। अब दुकानदार आपको प्रभाव में लाने के लिए फोफे का सहारा लेता है। साधारण शब्दों में इसे आग से बाहर निकलने का डर। आग यानी मुसीबत। कैसे? कभी सोचा है आपने? वह चालाक दुकानदार जबरदस्ती बहुत सारा सामान आपको दिखाने के लिए निकाल देगा और तब आपको लगेगा कि यह सब उसने आपके लिए किया है और इन सबके लिए आप जिम्मेदार हैं। इन दोनों डर की वजह से आप नर्वस हो जाते हैं और सामान ले लेते हैं। यही बात तब भी होती है, जब कोई लड़का किसी लड़की से प्रेम करता है। अब जादू यहां ये है कि महिलाओं पर फोमो और फोफे का कोई असर नहीं पड़ता है। कोई मरता है तो मर जाए उनकी बला से। हां, उनको फोलो (FOLO  यानि Fear of Loosing Out) से फर्क पड़ता है यानी जो उनके पास है, उसे खोने का डर। यही वजह है कि लड़के किसी लड़की के मित्र या प्रेमी बनने से पहले ही उस लड़की को खोने से डरने लगते हैं और लड़कियां संपर्क / संबंध में आने के बाद। इसलिए लड़कियां शक करती हैं। इस तरह वह लडकी दुकानदार के चंगुल में नहीं आती है। राजनीति में इन तीनों कारणों को समझकर जब कोई नेता मीडिया को मैनेज करता है और अपनी सरकार की कोई गलत खबर नहीं आने देता है तो वह आपके सारे विकल्प खत्म कर रहा होता है, बिल्कुल दुकानदार की तरह। फिर वो फोमो अर्थात बाहर होने के डर का सहारा लेता है। जनता अर्थात वोटर को यह अहसास दिलाता है कि उसकी, उसके समुदाय और धर्म की रक्षा सिर्फ वही कर सकता है। इसके लिए कीमत तो चुकानी पड़ेगी और यह कीमत होती है आपका वोट। जब वह समझता है कि आप फोमो की गिरफ्त में आ गए हैं, तब वह आखिर में फोफे नी डर का सहारा लेता है और ‘मैं नहीं तो कौन बे’ की तर्ज पर आपकी बुद्धि पर हमला करता है। यह डर धर्म से लेकर देश-विदेश से हमले के नाम पर जनता के दिलो दिमाग में भरा जाता है। भारत में गोदी मीडिया यही कर रहा है। मैं नहीं तो कौन की तर्ज पर अपनी दुकान वह इतनी पैâला देता है कि आप प्रभाव में आ जाते हैं। केबीसी की तरह ‘आप भी बन सकते हो करोड़पति’ की तर्ज पर जब इसका व्यापक प्रचार होता है तो महिलाओं की बुद्धि भी हर ली जाती है और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते हर कोई फोमो से प्रभावित होकर पहले गली मुहल्ले का नेता और फिर पता नहीं क्या क्या बनने की चाह में सामान खरीद लेता है। इसलिए अब तक के जुमलाना अनुभव से सबक लें और ऐसे मक्कार दुकानदारों से बचें।

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