मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : राष्ट्रीय खेल ‘खेला'

अवधी व्यंग्य : राष्ट्रीय खेल ‘खेला’

एड. राजीव मिश्र मुंबई

आज सुबह से पंचायत भवन मा बहुतै गहमा-गहमी है। आज पूरे गांव के लोग ई बात के फैसला करे आय अहइ कि कवन खेल यहि देश के राष्ट्रीय खेल होवय के चाही। धीरे-धीरे पूरा पंचायत भवन भरि गवा अउर चर्चा चालू हुई गवा। गाँव के परधान गला खखारत बोलि परे, देखो आज देश मा तरह-तरह के खेल चलि रहा है, किरकिट, फुटबाल, बैटमिंटन फलाना ढिमका पर यहि खेल के हमरे बच्चा लोग नही खेल पावत हैं। ई फिरंगियन के खेल रहा यही कारन अबहीं तक अपना देश के कौनऊ राष्ट्रीय खेल नही डिकलेयर होइ पावा है। अब यहि गाँव के जुम्मेवारी है कि हम लोग यहि देश के परधानमंतरी के कउनउ राष्ट्रीय खेल के सुझाव दिहा जाय। तो आप सब लोग बतावा जाय कि कवन खेल के राष्ट्रीय खेल डिकलियर किहा जाय? हम का कहिथ है दद्दा, कबड्डी कईसन रही आपन गाँव जवार के खेल अहइ? अरे छोड़ो, जुम्मन के पिछली बार पचइयां के करिहाव आज तक ठीक नही भई। अच्छा भईया झाबर कईसन रही? हटो यार, तोहका बारहों महीना पलिहर कहाँ मिली जवन झाबर खेलिहो? एक काम करो गुल्ली-डंडा के फाइनल करो। ई हमरी आँख देखि रहे हो? दस बरिस पहिले के घुसी गुल्ली आज तक नही निकरी, अगर केहू गाँव मा गुल्ली-डंडा के नाम लिहिस तो हमसे बुरा केउ न होई। आखिर में गाँव के सबसे हुसियार मनई बलेसर खड़ा भये। अइसा है परधान सबसे बढ़िया ई है कि ‘खेला’ के राष्ट्रीय खेल डिकिलियर कइ दिहा जाय। ‘खेला’ ई कवन खेल है बलेसर? अरे भइया, इहै तो आपन देश के असली खेल है। १९६७ के चुनाव के बाद से ई खेला के केंद्र सरकार से लइके केतनी राज्य सरकार तक मान्यता दीहें हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र अउर गोवा तो यहि खेल के चैंपियन रहि चुके हैं। यहि खेला में न घायल होए के डर न आउट ऑफ फार्म के चिंता, पइसा अउर पद तो हमेशा बना रही। जब पूरा देश खेला कइ रहा है तो यहिके राष्ट्रीय खेल डिकिलियर करै में का परेशानी है? ताली के गड़गड़ाहट के बीच आखिर मा ‘खेला’ राष्ट्रीय खेल के रूप में स्वीकार होइ गवा।

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