जब दे मेट!

भाग १०

मनमोहन सिंह

राशाद पुलिस वाले को देखकर बिल्कुल भी नहीं चौंका था। उसे पता था वह क्यों आई है। राशाद जिस एनजीओ से जुड़ा था, उसके सिलसिले में पुलिस से बातचीत होती रहती थी। फिलवक्त उसका ध्यान पुलिस की जगह एन्ना की कॉल पर था।
‘हैलो, मेरा नाम एजेल है। मैं गाजियनटेप पुलिस से हूं। अगर आप कम्फर्टेबल हैं, आपकी तबीयत ठीक है तो मैं आपसे बातचीत कर सकता हूं?’ पुलिस अफसर ने बड़े आराम से पूछा। उसके साथ दो और कांस्टेबल थे।
‘हां, बिल्कुल मेरी तबीयत ठीक है, कम्फर्टेबल हूं। हम बिल्कुल बात कर सकते हैं।’ उसने जवाब दिया।
‘अब बताइए हादसा कैसे हुआ आपके साथ? इतने सारे जख्म कैसे?’
‘सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता यह कैसे हुआ? मेरी याददाश्त के मुताबिक, उस रोज मैं अपने घर पर आराम कर रहा था। मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। मैंने एक टैबलेट ली थी उसके बाद मुझे हल्की सी नींद आ गई थी शायद! लेकिन जब मेरी नींद खुली तो मैं अस्पताल में था। इसके अलावा मुझे कुछ याद नहीं है।’ राशाद ने कहा।
‘आप जख्मी हैं बुरी तरह। आप कैसे कह सकते हैं कि आपको पता ही नहीं चला! आपकी बातों पर मैं कैसे एतबार कर सकता हूं?’ अफसर ने कहा।
‘सर, यह आपकी अपनी परेशानी है। हकीकत मैं बयां कर चुका हूं।’ राशाद ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया।
उसकी नजर अब जोबान पर थी। जोबान भी हैरानी से अस्पताल को, राशाद को और पुलिस वाले को देख रहा था।
अफसर जोबान के पास पहुंचा। सवालात तकरीबन वही थे और जवाब भी तकरीबन वही। उसने अपने मातहतों को उनका स्टेटमेंट लेने का आदेश दिया और यासेर की तरफ मुड़ गया।
‘आपकी किस्मत अच्छी थी एजेल सर के पास आपका केस है। वरना कोई दूसरा अफसर होता तो आपको बड़ी तकलीफ होती।’ राशाद का स्टेटमेंट लेते हुए कांस्टेबल ने कहा।
इस बीच राशाद का फोन बज रहा था। उस पुलिस वाले ने राशाद को फोन अटेंड करने के लिए कहा। राशाद ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर एक बार उसका फोन बज उठा। ‘सुनो राशाद तुम फोन अटेंड कर लो, हम बाहर चले जाते हैं अगर खास बात करनी है तो…?’ पुलिस अफसर ने राशाद से कहा।
राशाद में फोन उठा लिया और धीरे से कहा,
‘हैलो… एन्ना तुम कहां हो?’
‘मैं एन्ना नहीं। क्या आप एन्ना को जानते हैं?’ सामने से सवाल पूछा गया।
सवाल सुनकर राशाद का दिमाग कुंद हो गया। उसे पूरा यकीन था कि आज उसकी एन्ना से बात हो जाएगी। उसका चेहरा उतर गया। वह कुछ कहना चाह रहा था लेकिन उसके सिर्फ होंठ हिल रहे थे आवाज नहीं आ रही थी। अफसर की नजर उसके चेहरे पर थी। वह समझ रहा था कि राशाद परेशान हो गया था।
‘क्या आपको पता नहीं है एन्ना कहां है? फिर यह फोन आपके पास कहां से आया? आप प्लीज बताइए एन्ना कहां है? और ठीक तो है न वह? प्लीज बताइए?’
सामने से शायद फोन कट गया था। वह बार-बार फोन लगाने की कोशिश कर रहा था। शायद नेटवर्क इश्यू के चलते फोन लग नहीं पा रहा था। राशाद लगभग रूआंसा हो गया था। जोबान जो उसकी तरफ लगातार देख रहा था ने उससे पूछा, ‘क्या हुआ राशाद? एन्ना का कुछ पता चला? वह ठीक तो है?’ राशाद कुछ बोल नहीं पा रहा था।
अब पुलिस अफसर से रहा नहीं गया उसने दखलंदाजी करते हुए सवाल किया, ‘एन्ना कौन है? और आप उसके लिए इतने परेशान क्यों हैं? अगर आप मुझे बताएंगे तो… हो सकता है मैं आपकी मदद कर सकूं!’ वह जोबान के करीब आया। जोबान ने उसे सारी दास्तान बताई।
‘ओह सो सैड… आप फिक्र मत कीजिए। मेरे एक कलीग हैं वह रेस्क्यू टीम को हेड कर रहे हैं। मैं उनसे बात करता हूं। आप मुझे एन्ना का नंबर और उसकी तस्वीर फॉरवर्ड कर दीजिए। आप मेरा नंबर नोट कीजिए।’ पुलिस अफसर एजेल ने कहा।
राशाद ने ऑफिसर का नंबर नोट किया और उस नंबर पर एन्ना की तस्वीर और थोड़ी सी जानकारी फॉरवर्ड कर दी। एजेल ने एन्ना की तस्वीर को गौर से देखते हुए कहा, ‘तो एन्ना यह है? एक्रिन की फ्रेंड…एक्रिन तो एडमिट थी। एन्ना…’ वह कहते-कहते रुक गया।

क्रमश:

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