पी. जायसवाल मुंबई
भारत सरकार ने हाल ही में कई रेलवे स्टेशन के सौंदर्यीकरण की योजना लॉन्च की है। अच्छी संपत्ति के अगर रख-रखाव और प्रबंधन की व्यवस्था नहीं की गई तो एक समय के बाद इसमें क्षरण शुरू हो जाएगा। अंग्रेजों ने जब शुरू में रेलवे स्टेशन स्थापित किए तो उस समय विशेष के हिसाब से संपूर्ण इकोसिस्टम विकसित किया। आज हम अगर फिर से रेलवे स्टेशनों का पुनर्निर्माण कर रहे हैं तो साथ में पेशेवर और दक्ष मानवशक्ति तैयार करने की दरकार है। ताकि एयरपोर्ट जैसी सुविधाओं का लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सके और रोजगार का सृजन भी किया जा सके।
एक और योजना के अंतर्गत रेलवे की खाली पड़ी जमीनों को उन पर कार्गो वेयरहाउस बनाने के लिए लीज पर दिया जाना है। यह निष्क्रिय संपत्ति को उत्पादकीय संपत्ति में बदलने जैसा है। इन सब प्रयासों को देखते हुए यहां मैं रेलवे में छुपी और लॉक एक ऐसी वैल्यू की बात कर रहा हूं, जिसे अनलॉक किया जाना और उस पर ध्यान दिया जाना अब भी बाकी है।
आज कोरोना के व्यापक खतरे के कम होने के बाद पूरे देश में यात्राएं बढ़ गई हैं। लाखों लोग यात्रा कर रहे हैं। हर आदमी लंबी दूरी की यात्रा में औसतन ५०० रुपया प्रति व्यक्ति टिकट के अलावा भी बहुत खर्च कर देता है। कई करोड़ से ज्यादा यात्री रेलवे से यात्रा कर रहे हैं। ये करोड़ों यात्री एक चलते फिरते बाजार हैं, इन्हें ग्राहक और ग्राहक एक भगवान की अवधारणा पर ही ट्रीट करना चाहिए। आज की तारीख में ट्रेन से जो कोई भी यात्रा करता है, उसके दिमाग में रास्ते में कुछ न कुछ यात्रा के दौरान खर्च करने का इरादा भी रहता है। इस खर्च का कोई रिकॉर्ड रेलवे के पास नहीं रहता है, वह यह खर्च कुछ रेलवे के कैटरिंग सर्विस, तो कुछ रेलवे के आधिकारिक प्लेटफार्म वेंडर, और कुछ ट्रेन में घूम रहे अनाधिकारिक वेंडर पर करता है। यदि कम से कम ५० रुपए प्रति यात्री खर्च को ही मान लिया जाय तो वर्ष में कई हजार करोड़ के व्यापार का बाजार है। रेलवे हॉस्पिटैलिटी बाजार जोकि यात्री भाड़े के लगभग आसपास हो सकता है, यदि और काम किया जाए तो बढ़ भी सकता है।
मेरा सोचना है कि रेलवे और आईआरसीटीसी एवं यात्री विभाग को ग्राहक एक भगवान और उनके द्वारा किए गए खर्च की संभावना को एक हॉस्पिटैलिटी बाजार समझना चाहिए। आप अक्सर ट्रेन से जाते होंगे तो ट्रेन की कैटरिंग का खाना जो ट्रेन में ही बनाया जाता है, उसे भी खाते होंगे। शायद ही कभी ऐसा होता हो कि आप ट्रेन के खाने एवं उसकी गुणवत्ता से संतुष्ट हों। लंबी दूरी की ट्रेनों की बात करें तो लगभग सारी श्रेणियों एवं ओवरलोडेड रेलयात्रियों को जोड़ लें तो एक कुशीनगर एक्सप्रेस जैसी ट्रेन में एक फेरे में २,००० यात्री यात्रा करते हैं और लगभग हर यात्री प्रतिदिन २०० रुपए के औसत से खर्च करता है। अगर इसकी गणना करें तो वह पैंट्री कार वाला एक दिन में ४ लाख का माल बेच सकता है, सिर्फ एक पैंट्री कार लगाकर। एक अच्छी दुकान लगाकर भी लोग इतना बिक्री नहीं कर पाते हैं, जितना बिक्री ट्रेन में लगा एक पैंट्री कार वाला कर लेता है, क्योंकि उसका एक निश्चित बाजार है और उस ट्रेन विशेष में उसका लगभग एकाधिकार और बेचने का विशेषाधिकार है। अगर उस पैंट्री कार वाले के दिमाग में यह डाल दिया जाय की भाई रेल यात्री को अपना ग्राहक और ग्राहक को भगवान समझो तो व्यवस्था बदल सकती है।
ट्रेन एक सहज सुलभ एवं निश्चित बाजार है, जहां व्यापार होना ही होना है जरूरत है इसमें पेशेवराना रवैया लाने की। पैंट्री कारवाले, प्लेटफार्म वेंडर एवं अन्य रेलवे अधिकारिक वेंडर के अन्दर यह भावना कूट कूट कर भरनी चाहिए कि भारतीय रेलवे के ग्राहक एक भगवान हैं और यह एक हॉस्पिटैलिटी सेक्टर है।
रेलवे को एक दक्ष स्तर के स्किल सेट की जरूरत है जिसकी तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए. अपनी शिक्षा नीति, कौशल विकास और होटल मैनेजमेंट के कोर्स में ट्रेन हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट का कोर्स भी शामिल करना चाहिए। जो स्टाफ ट्रेन पैंट्री में लगे हैं उन्हें ट्रेन हॉस्पिटैलिटी का कोर्स करने के लिए प्रेरित करना चाहिए व उन्हें वरीयता देनी चाहिए। ट्रेन कस्टमर को मैनेज करने के लिए भी एक स्किल सेट की जरूरत है, साथ ही जो पैंट्री में किचन स्टाफ लगे हैं उनमें भी होटल मैनेजमेंट कोर्स की वरीयता हो तो खाने से लेकर सर्विस तक की श्रंखला में पेशेवर रवैया लाया जा सकता है.
आप ध्यान दें जब आप एअरपोर्ट पर जाते होंगे तो आप पाते होंगे की वहां एअरपोर्ट हैंडलिंग, कार्गो हैंडलिंग एवं ग्राउंड हैंडलिंग के स्टाफ रहते हैं। सरकार को भी यहां ध्यान देना चाहिए की रेलवे का प्लेटफार्म मैनेज करने के लिए एक विशेष तरह के स्किल सेट की जरूरत है सरकार को भी अपने स्किल प्रोग्राम की तरह प्लेटफार्म मैनेजमेंट का एक कोर्स चलाना चाहिए जिसमें पैâसिलिटी मैनेजमेंट के साथ साथ कार्गो हैंडलिंग, पैसेंजर हैंडलिंग तक के कोर्स शामिल हों। देश के कुछ चुनिंदा प्लेटफार्म को पायलट प्रोजेक्ट के तर्ज पर वहां प्लेटफार्म मैनेजमेंट की सुविधा शुरू की जानी चाहिए। इससे एक तो स्किल आधारित रोजगार का सृजन भी होगा और यात्रियों को बेहतर सुविधाएं भी मिलनी शुरू हो जाएंगी। वहीं जो रेलयात्रियों को परेशानियां हो रही हैं, जैसे कि साफ-सफाई, खान-पान, लगेज हैंडलिंग आदि आदि उन्हें दूर किया जा सकता है। इस संबंध में प्लेटफार्म पर भीड़ कम करने के संबंध में भी कुछ काम किया जा सकता है। लंबी दूरी की ट्रेनों में जल्दी चेक इन लगेज स्टोरेज एवं हैंड बैग आदि के नियम लाकर कुछ हद तक ट्रेन के अंदर और बाहर साफ-सफाई, सुविधा और अधिक खुली जगह की व्यवस्था की जा सकती है। साथ ही ट्रेन में एवं प्लेटफार्म पर अधिकारिक एवं अनाधिकारिक वेंडर में भी अनुशासन एवं पेशेवराना रवैया विकसित किया जा सकता है।
अब वक्त आ गया है कि सरकार की दृष्टि इस निश्चित बाजार की तरफ जाए। उन्हें आरामदायक हॉस्पिटैलिटी भी दे और रेलवे को एक हॉस्पिटैलिटी बाजार की तरह से देखे, रेलवे में पैंट्री मैनेजमेंट, रेल यात्री प्रबंधन, प्लेटफार्म मैनेजमेंट, कार्गो मैनेजमेंट, प्लेटफार्म पैâसिलिटी मैनेजमेंट आदि स्किल सेट के कोर्स को मान्यता व प्राधान्य देते हुए, उनकी भर्ती को प्रोत्साहित करे।
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री व सामाजिक तथा राजनैतिक विश्लेषक हैं।)