झूठ से दिल बहलाते हुए
हमने बिता दिए कई दिन
महीने साल
और आज भी हम
भागते चले जा रहे हैं
इस झूठ के पीछे
यह समझते हुए कि
यह झूठ झूठ नहीं है।
इस तरह हम सच को दूर हटाते हैं
खुद धोखा खाते हैं, मगर झूठ का साथ निभाते हैं
आँख में पट्टी बांधकर।
और सच को आंख दिखाते हैं
सच्चाई जानकर।
आजकल तो हम झूठ पर मरते हैं।
डरते हैं, मगर झूठ की सेवा करते हैं।
अपना पेट भरते हैं।।
सत्य
वह पुराना उपकरण है
जिससे चल रहा था
व्यक्ति समाज राष्ट्र
व्यवस्थित होकर ।
उसे अपदस्थ करते हुए
आ गया बेहतरीन झूठ
एक नया उपकरण बनाकर
उत्पादन का।
और बनाने लगा नया संबंध
उत्पादन का।
इस नवीन रूपांतरण में
टूट गईं स्थापित मान्यताएं
दबाव में नए उपकरण के साथ
नए संबंध जोड़कर ।
पीछे छूटते हुए हम
गा रहे हैं वही पुराना गीत
अधिरचना का ।
जिसे सुनने के लिए
न समय है न अच्छा
आज के समय को।।
अन्वेषी