बिहार के सीएम नीतिश कुमार एनडीए में वापस आ गए हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है। पर अभी तक एनडीए में भाजपा और और सहयोगियों के बीच सीट शेयरिंग का पेच फंसा हुआ है। नीतिश को भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाए एक महीने से ज्यादा वक्त हो चुका है पर बात बनी नहीं है। यही कारण है कि भाजपा ने १९५ प्रत्याशियों की जो पहली सूची जारी की है, उसमें यूपी तो है पर बिहार का नाम नहीं है।
भाजपा ने देशभर के १९५ प्रत्याशियों की पहली सूची भी जारी कर दी, लेकिन बिहार में एक भी सीट के लिए प्रत्याशी नहीं घोषित किया। सिर्फ सीट बंटवारे के नाम पर बहुत कुछ अटका हुआ है। गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के कंधे पर यह जिम्मेदारी है कि वह सीट बांटे तो भी घटक नहीं बिखरें। इसी में सब फंसा हुआ है। दरअसल, २८ जनवरी के पहले भाजपा के साथ-साथ बाकी दलों के लिए भी सीट बंटवारा बड़ा मामला नहीं था। दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों टुकड़ों को भी अच्छी-खासी सीटें मिलने की उम्मीद थी। इसके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का भी मन ठीक- ठाक बुलंद था। भाजपा के इन घटकों को लग रहा था कि अगर पिछली बार की १७ सीटों को २० में बदलकर शेष २० का बंटवारा भी होगा तो लोकसभा क्षेत्रों में उनकी पार्टी प्रत्याशी उतार सकेगी, लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की पार्टी जदयू ने दोबारा एंट्री की तो २०१९ चुनाव वाली स्थिति सामने आ गई। तब भाजपा ने १७ और जदयू ने १७ सीटों पर प्रत्याशी दिए थे। शेष छह सीटें लोक जनशक्ति पार्टी को मिली थीं। तब उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी इस खेमे में नहीं थे। चर्चा है कि भाजपा सीटों के बंटवारे में देर कर रही है, ताकि सभी की मंशा सामने आ जाए। इसके साथ ही जिस तरह से कांग्रेस और राजद के विधायक भाजपा की ओर मुखातिब हैं, उससे यह संदेश देने का प्रयास हो सकता है कि भाजपा की मजबूती और संभावना देखकर लोग आ रहे हैं। मतलब, भाजपा से सभी का मोह है और उसके पास प्रत्याशियों की कतार लगी है। हालांकि, यह भी पक्का है कि इस बार जदयू कमजोर है और उसे १७ सीटें तो मिलने से रहीं। दूसरी तरफ भाजपा १७ से ज्यादा लेने का प्रयास करे या अपने प्रत्याशियों को सहयोगी दलों के सिंबल पर उतारने का प्रयास भी करे, यह भी संभव है।