मुख्यपृष्ठस्तंभभोजपुरिया व्यंग्य : अबकी चुनाव में जाग गईल, ‘विधायक जी क अंतरात्मा'

भोजपुरिया व्यंग्य : अबकी चुनाव में जाग गईल, ‘विधायक जी क अंतरात्मा’

प्रभुनाथ शुक्ल भदोही

भईया जी हमनी के इलाका के प्रभावशाली विधायक हवें। ई समझल मुश्किल रहे कि राजनीति उनसे ह कि उ राजनीति के ह। हालांकि, अब हालात बदल गईल बा, लेकिन विपक्ष में रहला के बाद भी सत्ताधारी दल के लोग उनका लगे आके सलाह लेवे ले। भईया जी से मिल के जब लोग लवटत बाड़े त अपना के बहुत खुश पावेले। जइसे भईया जी विधायक ना होके देवता हउवन। पता ना कवन मंत्र भैया जी निकलत घरी ओह लोग के कान में फुसफुसात बाड़े कि लोग गले मिल के गुलाब निहन खिलल निकलेला।
राजनीति में भईया जी के प्रभाव इहे बा कि उनके उठला पर सबेर होला आ सुतला पर रात होला। कहल जाला कि बिना उनकर संकेत के एगो पत्ता भी ना हिलेला। अच्छा अवुरी बुरा के सब खबर उनके साथ रहेला। राजनीति में आवे से पहिले उ पंचर बनावत रहले। शहर के चौक पर उनकर एगो मशहूर पंचर के दुकान रहे। साइकिल बनवला के बाद उहो ओकरा में हवा भरत रहले। लेकिन बदलल जमाना में उ विधायक बन गईले। अब उ लोगन के हवा से भर देला। भईया जी बाहर से बहुत सफेदपोश बाड़े। बाकिर भीतर से ऊ ओतने करिया बा।
भईया जी के पार्टी हाल के साल में हाशिया प बिया। पूरा निर्वासन काल बीत गइल आ सत्ता के स्वाद नइखे पावत। अब तक उ धर्मनिरपेक्ष रहले अवुरी अपना विरोधी के सांप्रदायिक कहत रहले। बाकि, अबकी बेर धर्मनिरपेक्षता का प्रति उनकर धैर्य डगमगा गइल। अब उ अपना पार्टी के आलोचना करे लागल बाड़े। जवना पार्टी में भईया जी पचास साल तक विधायक रहले। झोपड़ी में पंचर के दुकान से आलीशान हवेली में आ गइलें। मशहूर शहरन में प्रॉपर्टी डीलिंग के कारोबार शुरू कइले। अब उहे पार्टी भईया जी के बेमतलब लागे लागल बा।
भईया जी अब तक सुतल रहले। बाकि, अब उनकर अंतरात्मा जाग गइल बा। सत्ता के सुख से लगातार वंचित के चलते उ वर्तमान में अंतरात्मा के आवाज प पार्टी के बदल देले बाड़े। भईया जी जईसन लोग के अंतरात्मा चुनाव के मौसम में ही जागेला अवुरी उहो जब सत्ता से बाहर हो जाला। काहे कि आत्मा अमर होला। ऊ जागल बा कि सुतल, एकरा से कवनो फर्क ना पड़े। लेकिन जब अंतरात्मा के बात होखे त ओकरा के संभालल मुश्किल बा।

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