कल्याण
कल्याण रेलवे स्टेशन के बाहर रिक्शा चालकों की काफी मनमानी चल रही है। रिक्शावाले मेल एक्सप्रेस ट्रेनों से आनेवाले रेल प्रवासियों के लिए मुसीबत बन जाते हैं। रेल प्रवासी रिक्शा चालकों के इस मनमाने रवैये पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। कल्याण स्टेशन पर सबसे अधिक लूट भिवंडी वासियों के साथ की जाती है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर ए.के. सिंह ने रिक्शा चालकों की इस करतूत का पर्दाफाश किया है।
ए.के. सिंह का कहना है कि कल्याण में अन्य प्रांतों से आनेवाले रेल यात्रियों का आर्थिक शोषण किया जाता है। रिक्शा पर मीटर लगा है। रिक्शा पासिंग के समय उसकी मरम्मत भी की जाती है, परंतु उसका उपयोग यात्रियों के लिए नहीं किया जाता है। ठाणे जिले के डोंबिवली में रिक्शा मीटर पर चलते हैं, परंतु अन्य शहरों में मीटर बंद कर मनमाने ढंग से भाड़ा वसूला जाता है। सवाल यह उठता है कि कल्याण का आरटीओ अन्य शहरों की तरह मीटर से रिक्शा चलाने की पहल क्यों नहीं करता? कल्याण से भिवंडी जानेवाले यात्रियों से मौका मिलने पर सौ रुपए तक वसूला जाता है, जबकि कल्याण की वातानुकूलित परिवहन सेवा तीस रुपए और सामान्य एसटी बस का सिर्फ १५ रुपए किराया होता है। भिवंडी मेहनत-मजदूरी करनेवालों का शहर है। कल्याण बस डिपो को रिक्शे से घेर कर रखा जाता है, जिसके कारण बस को डिपो में जाने-आने में काफी दिक्कत होती है। यातायात पुलिस की भी रिक्शा चालक नहीं सुनते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि स्टेशन परिसर में आरटीओ ने बोर्ड लगा रखा है कि ओला, उबर और अन्य वाहन स्टेशन के पास से यात्री न बैठाएं। ओला, उबर वाले लोग स्टेशन से काफी दूर से यात्री को बैठाते हैं। इस तानाशाही रवैये से महिलाओं, बच्चों, वृद्धों, अपंगों और गर्भवती महिलाओं के सामने सिर्फ एक यही विकल्प होता है कि वो मंहगी दर पर रिक्शा से जाएं या फिर सामान को ढोते हुए पैदल चलकर दूर स्थित ओला, उबर की सुविधा लें। क्या आरटीओ को इस तरह का बोर्ड लगाना चाहिए? कल्याण का आरटीओ क्या रिक्शा चालकों के हित में काम करने के लिए बनाया गया है।
परिवहन मंत्री और आरटीओ के वरिष्ठों को चाहिए कि ठाणे, डोंबिवली की तरह ही कल्याण, भिवंडी के अलावा अन्य शहरों के रिक्शा को मीटर से चलने के लिए बाध्य करें। इसके साथ ही ओला, उबर जैसे सस्ते और अच्छे साधन को स्टेशन परिसर से यात्रियों को बैठाने की परमिशन दी जाए।