मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : कट्टर इमनदार

अवधी व्यंग्य : कट्टर इमनदार

एड. राजीव मिश्र
मुंबई

आज सुबह से गुलाबो भउजी भन्नाई पड़ी हैं, रहि-रही के मानो आँख से अंगार बरसि रहा है। घर से बाहर तक पैर पटकि-पटकि के खुदय से भुनभुनाय रही हैं कि तब तक मिट्ठन चाची आय धमकी अउर पुछि परी, का भवा दुलहिन? काहें बवंडर मचाय रही हौ? अरे चाची, अब का बताई! एक तो मरद मिला है उहौ पूरा नल्ला, सुबह कुरता-पैजामा पहिन के निकरत है अउर दिन भर बहेड़ी के बिया फोरत है, न कउनउ काम न कउनउ धंधा। एक दिन कमात है और महीना भर बईठ के खात है। कुछ कहो तो बात-बात में अन्ना हजारे हुइ जात है, अनशन करत है उहौ एक पसेरी खाय के। सुनो दुलहिन! बुझरता परमारथ में लागि है, पूरे गाँव-जवार में जवन काम केउ नही कइ पावत है उ काम बुझरता कई देत है। देखो चाची दिमाग के दही न करो, इहै कहि-कहि के हमरे घर के बंटाधार होइ गवा। अच्छी-भली एक ठो सफाई कर्मचारी के नौकरी रही उहौ छोड़-छाड़ के बैइठ गयें। कहत हैं अब एक गाँव नही पूरे देश के सफाई करे के अहइ। कुछौ कहो दुलहिन, बुझरता सोना है सोना। एतना सुनतय मानो गुलाबो के तन मा आगि लागि गई, अइसा है चाची एतना सोना है तो हँसुली गढ़ाय लेव, अउर एक बात सुनौ ज्यादा पंचाइत न करौ समझी। हमरे जीव से पूछो, अब बताओ बिना बात के खासय लाग है, एतनी घनघोर गरमी मा मफलर लपेटय लाग है। पिछले महीना में गाँव मा दुइ बार घूस लेते पकड़े गए अउर तो अउर दुइ बार जम के कुटाई भई है ओकरे बाद भी नेतागीरी वैâ भूत सिर से नही उतरा। कुछौ कहो दुलहिन, हमार बुझरता कट्टर इमानदार है अउर देखू एक दिन यहि देश के परधानमंतरी बनि के रही। एतना कहि के मिट्ठन चाची लाठी टेकत बाहेर निकरि गई अउर गुलाबो भुनभुनात घर में घुसि गई।

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