६ महीने से टूटे पड़े ४० सीटों वाले चार शौचालय की खबर लेने वाला कोई नहीं
अशोक तिवारी / मुंबई
गत वर्ष दिसंबर महीने में खुद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कामराज नगर का दौरा किया था और निवासियों को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि कामराज नगर के झोपड़पट्टी के सभी नागरिकों को सरकार मुफ्त में इमारत बनाकर फ्लैट देगी। लेकिन कामराज नगर की झोपड़पट्टी की जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। देश की सरकार देशभर में भारी संख्या में शौचालय बनाने का दावा करती है, जबकि कामराज नगर में वॉर्ड नंबर १२५ में मयूर फोटो स्टूडियो के पीछे चार सार्वजनिक शौचालय हैं। कुल १० सीटर के ४ शौचालयों की संख्या ४० बताई जा रही है। इस शौचालय का इस्तेमाल वहां की झोपड़पट्टी की करीब २,००० लोग करते हैं। पिछले ६ महीने से इस शौचालय की दीवारें टूटी हैं और शौचालय के दरवाजे भी पूरी तरह से टूटे हुए पड़े हैं। शौचालय के अंदर बड़े-बड़े चूहों ने अपना डेरा बना लिया है। आलम यह है कि यह शौचालय बंद पड़ा हुआ है स्थानीय निवासियों ने मनपा में कई बार शिकायत की लेकिन शौचालय को बनवाने की दिशा में कोई भी कदम नहीं उठाया गया। जिसकी वजह से स्थानीय लोग पास की खाली पड़ी खाड़ी में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं। मुंबई जैसी देश की आर्थिक राजधानी में झोपड़पट्टी की जनता को मूलभूत सुविधा भी न प्रदान करने वाली सरकार के विकसित भारत के संकल्प पर यह सवालिया निशान है।
गौरतलब है कि मुंबई की सबसे पुरानी झुग्गियों में से एक घाटकोपर-पूर्व ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर बसा हुआ रमाबाई अंबेडकर नगर के नागरिक शिंदे सरकार की लालफीताशाही का शिकार हो रहे हैं। जिसकी वजह से उनका जीवन नर्क से भी बदतर हो गया है। बता दें कि माता रमाबाई आंबेडकर नगर झोपड़पट्टी ७५ एकड़ में पैâली हुई है। इस झोपड़पट्टी को १९६० के दशक की शुरुआत में बनाया गया था। वर्तमान में रमाबाई आंबेडकर नगर में लगभग १६,५०० झुग्गीवासी हैं। रमाबाई आंंबेडकर नगर घाटकोपर में दलित निवासियों की एक बड़ी आबादी है, जो १९६० के दशक से चली आ रही है।
यह मामला मेरे संज्ञान में अभी तक नहीं आया था। मैंने संबंधित अधिकारियों को तुरंत शौचालय का दौरा कर उचित कार्रवाई करने का ऑर्डर दिया है। शीघ्र ही इस समस्या को खत्म कर दिया जाएगा।
गजानन बेलाले, सहायक आयुक्त एन वॉर्ड
कामराज नगर की झोपड़पट्टी को नेताओं ने सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है। मुंबई मनपा जन सुविधाओं के प्रति इतनी लापरवाह है कि मैंने खुद भी कई बार शिकायत की है, लेकिन शौचालय बनाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। मुंबई जैसे शहर में जनता कीड़े-मकोड़ों और जानवरों के जैसा जीवन जी रही है। यह बात इंसानियत को शर्मसार करने जैसी है।
दीपक भोसले, स्थानीय नागरिक और समाजसेवक