सामना संवाददाता / नई दिल्ली
आगामी कुछ वर्षों में होनेवाली र्इंधन की कमी और प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वेहिकल्स को पेट्रोल-डीजल गाड़ियों के ऑप्शन के तौर पर देखा जा रहा है। यही कारण है कि लोग तेजी से इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर स्विच कर रहे हैं। हालांकि, हाल ही में आई एक स्टडी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जिसमें बताया गया है कि पेट्रोल-डीजल नहीं, बल्कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों से ज्यादा प्रदूषण होता है। एमिशन डेटा एनालिसिस करने वाली कंपनी एमिशंस एनालिटिक्स की हालिया स्टडी में दावा किया गया है कि इलेक्ट्रिक वेहिकल्स के ब्रेक और टायर १,८५० गुना ज्यादा प्रदूषण पैâलाते हैं।
हवा में पैâलाते हैं हानिकारक केमिकल्स
एमिशंस एनालिटिक्स की स्टडी में बताया गया है कि इलेक्ट्रिक और गैसोलीन से चलने वाली कारों के ब्रेक और टायरों से ज्यादा प्रदूषण वाले कण निकलते हैं। इस स्टडी के मुताबिक, इलेक्ट्रिक गाड़ियां अपने भारी वजन के कारण मॉडर्न गैस पावर्ड गाड़ियों से ज्यादा हानिकारक केमिकल्स रिलीज करते हैं। इस अध्ययन में पता चला है कि प्रदूषण का स्तर १,८५० गुना ज्यादा हो सकता है। एमिशन एनालिटिक्स की स्टडी में बताया गया है कि इलेक्ट्रिक वेहिकल्स का वजन ज्यादा होता है इसलिए इनके टायर भी जल्दी खराब होते हैं, इससे हानिकारक केमिकल्स हवा में पैâल जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर ईवी के टायर क्रूड ऑयल से निकले सिंथेटिक रबर से बने होते हैं।
बैटरी के वजन से भी नुकसान
इस स्टडी में इलेक्ट्रिक गाड़ियों में लगने वाली बैटरी के वजन को लेकर बताया गया है कि गैसोलीन इंजिन की तुलना में ईवी में भारी बैटरी का इस्तेमाल होता है। यह अतिरिक्त भार ब्रेक और टायरों पर ज्यादा दबाव डालता है, जिससे डैमेज भी तेजी से होता है। रिपोर्ट में कुछ नामचीन कंपनियों की ईवी का उदाहरण देते हुए बताया गया कि दोनों की बैटरी का वजन करीब ८१६ किलोग्राम है। हालांकि, आधा टन यानी १,१०० पाउंड वाली बैटरी लगे ईवी से टायर के खराब होने और एमिशन मॉर्डन गैसोलीन कार से निकलने वाले एमिशन से ४०० गुना ज्यादा हो सकता है। इस अध्ययन में इलेक्ट्रिक कारों के टायर और ब्रेक पर समय रहते सही तरह से विचार करने को कहा गया है, ताकि प्रदूषण से बचा जा सके।