मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : कुकुरक चिंतन

मैथिली व्यंग्य : कुकुरक चिंतन

डॉ. ममता शशि झा
मुंबई

श्यामला और सलोनी पड़ोसी छली, हुनकर दुनु गोटे के कुकुर के बीच बड़ दोस्ती छलनि, भले ओ दुनु गोटे अपन स्टेटस के कारण घमंडे चूर रहइ छलि। दुनु के कुकुर के नौकर सांझ में घुमाब लेल ल जाए छलनि, दुनु के कुकुर के रोज भेंट होअ के कारण दुनु में बड़ प्रगाढ़ता छलनि। श्यामला के कुकुर के नाम जॉनी, आ सलोनी के कुकुर के नाम टॉमी छलनि।
जॉनी, टॉमी के देखि के भौंकल ‘की बात आइ बड़ उदास लागि रहल छी?’
टॉमी प्रत्युतर में भौंकल, ‘कि कहु जहिया सें नबका मालिक लग येलहुं, नीक भोजन सेहंता भे गेल।’
जॉनी भौंकइत, ‘किया ओ सब खाइ नइ छथिन?’
टॉमी, ‘खाइ छथिन, मुदा नबकी मालकिन नया विचार धारा बाली छथिन, विदेश से पढ़ल, हुनका देखाउंस कर के बड़ आदत, ओ हमारा लोक के देखा-देखि पैकेट बला खेनाइ दइ छथि जे हमरा कनिको नहि नीक लगइया, पहिने बड़की मालकिन मतलब हिनका सासु लग रही ते ओत रंग-बिरंगक पकवान बनइ, ओ सब हमरो घर के सदस्य जकां सब किछ खुआबइ छलि, क्यों पाहुन-परक अबइ छला त विशेष व्यंजन बनइ छल, तहन त महो महो भे जाइ छल। मुदा आब त पाहुन अबइ छथिन त हुनका होटले में ले जाइ छथिन, ओहि में बड़प्पन बुझाइ छइ आबक लोक के।’
‘हा से त ठिके कहलियइ’ जॉनी भौंकला।
टॉमी, ‘आ तु अपन हाल केह।’
जॉनी, ‘हमरा घर में ते बेसि काल बाहर से खेनाई मांगबइ जाइ छथिन, ओहि में से जे बचल से हमरा द दइ छथि, अपनो सब बाहरक खा के अस्वस्थ भे रहल छथिन आ हिनका सब दूआरे हमहुं अस्वस्थ भे रहल छी। हमर मालकिन त भरि दिन फोन पर नया-नया व्यंजन बनाब के बिध देखैत रहइ छथिन, मुदा देखिते-देखिते ततेक थाकि जाइ छथिन जे अलसा के बाहरे से मंगा लइ छथिन, आब ते हमरा सब होटल के खेनाइ स्वाद येक्कहि रंग लगइया पता नहि ओ सब रोज कोना खाइ छथिन।’
‘हमरो मालकिन हेल्थ केयर बला विडीयो देखइत रहइ छथिन मुदा सोफे पर बैसल-बैसल।’ टॉमी के भौंकनाइ से व्यंगक पुट झलकि रहल छल।
टॉमी जिज्ञासावश भौंकला ‘आ तोहर घर में काज करे बला सब की खाइ छथून?’
जॉनी, ‘ओ सब स्वास्थ्यप्रद भोजन करइ छथिन, हमरा सब के टहलाब के बहाने टहलइ छथि, रोज गार्डन में लोक सब से गप्प करइ छथि, ताहि से तन और मन दुनु से स्वस्थ छथि।’ दुनु अपन-अपन मालकिन के लेल चिंतन करइत नौकरक संगे घर दिस बिदा भेल।

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