मुख्यपृष्ठस्तंभजब दे मेट! ... कौन था तानाशाह डॉक्टर? -भाग १५

जब दे मेट! … कौन था तानाशाह डॉक्टर? -भाग १५

मनमोहन सिंह

पुलिस ऑफिसर एजेल अन्ना को कहानी सुनाता जा रहा था। सीरिया के तानाशाह का छोटे बच्चों पर अमानवीय अत्याचार सुनकर एन्ना के रोंगटे खड़े हो गए थे। वह सोच रही थी उन बच्चों के सामने उसकी तकलीफें क्या हैं? एक्रिन की आंखों में आंसू दिखाई दे रहे थे। वह समझ रही थी कि उसके हमदम उसके दोस्त एजेल ने अपनी जिंदगी में क्या-क्या तकलीफें उठार्इं।
एजेल के चेहरे पर पुरानी यादें दिखने लगी थीं। उसकी आवाज में हल्का-सा कंपन था, दर्द था। एक्रिन ने उसे एक गिलास पानी दिया और पूछा, ‘आर यू ओके एजेल?’
‘आई एम फाइन…’ एजेल का जवाब था।
उसने कहना शुरू किया,
‘एक तो बच्चों का दुख और दूसरी तरफ पुलिस का हैवानियत भरा रवैया। अब उनसे नहीं रहा गया। जनता सड़कों पर उतर आई। पुलिस प्रशासन ने पूरी कोशिश की कि उनके आक्रोश को दबा दिया जाए पूरी तरह से। लेकिन एक बार जब जनता सड़क पर उतर जाती है तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है। हुआ भी यही। यह एक किस्म की बगावत थी तानाशाह के खिलाफ। यह चिंगारी जो डेरा से शुरू हुई उसने धीरे-धीरे देश के काफी हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया। यहां तक की देश की राजधानी दमिश्क तक पहुंचने में इसे वक्त नहीं लगा। अब आग सीधे तानाशाह तक पहुंच गई थी। उसे भी लगा कि मामला कुछ ज्यादा ही संजीदा होता जा रहा है। डेरा में बच्चों को जेल से आजाद कर दिया गया। बच्चों के हालात बता रहे थे कि उनके साथ कितनी हैवानियत हुई थी। इसका असर होना ही था।’ -वह रूका। पानी का घूंट लेकर कहने लगा,
‘जनता पूरी तरह बगावत पर उतर आई थी। अब तानाशाह की नजर में खून उतर आया। उसने फरमान जारी किया। कुचल दो, खत्म कर दो। कहां जनता और उनके सामने सरकार की फौज। फौजी गोलाबारी के सामने आम जनता कहां टिकती? लेकिन फौजी भी तो आखिर इंसान ही थे न। उन्हें अपने ही देश के अपने ही लोगों पर गोली चलाना नामंजूर था। फौज के एक ग्रुप ने बगावत कर दी। उन्होंने आम जनता पर गोली चलाने से इनकार कर दिया और खुद जनता के साथ उनका हिस्सा बन गए। ग्रुप का नाम था प्रâी सीरियन आर्मी यानी ‘एफएसए’ जो तानाशाह से भिड़ गई।’
‘यह तो बड़ा अच्छा हुआ’ ऐन्ना ने कहा।
‘पहले पूरी बात सुन लो फिर किसी नतीजे पर पहुंचना!’ एजेल ने कहा।
‘दरअसल, बात यहीं पर खत्म नहीं हुई।’ उसने कहना जारी रखा। ‘अमेरिका, प्रâांस और ब्रिटेन ने एफएसए को सपोर्ट करना शुरू किया। सऊदी अरब, कतर और तुर्की ने भी मदद की। वजह सुन्नी मुस्लिम। उन्हें सीरिया में सुन्नी मुस्लिमों को पॉवरफुल बनाना था, क्योंकि सीरिया का शासक शिया अलाबी था और सऊदी अरब, कतर और तुर्की जैसे देश जहां सुन्नी मुस्लिमों का राज था, उन्हें यह पसंद नहीं था कि सीरिया में शिया मुसलमानों का राज हो। लेकिन यह शिया-सुन्नी की सियासत यहां खत्म नहीं होनेवाली थी। शिया शासक की मदद के लिए ईरान आ गया। लेबनान का हिजबुल ग्रुप भी मदद के लिए आगे आ गया। रूस और वहां के शासक की अच्छी जमती थी पहले से तो वह भी आ गया मदद के लिए। सबसे खतरनाक एंट्री हुई इस्लामिक स्टेट की।’ इस बीच एजेल का मोबाइल बज उठा। उसने फोन कट किया और मैसेज टाइप करने लगा। मैसेज सेंड करते हुए वह बोला,
‘उसने यानी आईसिस (आईएसआईएस) ने इस्लामिक स्टेट का वैâपिटल बना दिया सीरिया के रक्का को। बात शुरू हुई थी सीरिया को तानाशाह से आजाद करने की, लेकिन सीरिया तो जंग-ए-मैदान बन गया था। अब ऐसी जगह जहां पर इतने सारे ग्रुप आपस में भिड़ रहे हैं, वहां पर जनता की जिंदगी तो जहन्नुम-सी ही बननेवाली थी और हुआ भी यही। इस सिविल वॉर में कितने लोग मरे इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। ऐसे दौर में कई लोग सीरिया से अलग-अलग देश में चले गए। उनमें मेरी पैâमिली भी थी और यह जंग तो अभी भी चल रही है इसलिए आशाद भी यहां पर आ गया।’
‘एजेल तुमने सारी कहानी तो बता दी, लेकिन एक बात तुम बताना भूल गए।’ एक्रिन ने कहा। एजेल उसकी तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगा। ऐन्ना भी उसकी तरफ देखने लगी।
‘ऊपर वाले को आशाद और एन्ना की मुलाकात करानी थी इसलिए उसने जंग करवा दी इतनी बड़ी’ एन्ना ने माहौल को हल्का-फुल्का बनाने के लिए कहा।
‘एजेल लेकिन यह डॉक्टर कौन था? उसका देश के
पॉलिटिक्स से क्या लेना-देना था?’ एन्ना ने सवाल किया।
मुझे पता था तुम सवाल पूछोगी। क्रमश:

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