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तड़का : खूब खेलो बच्चों

कविता श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में ८ वर्षीय एक बच्चे की स्कूल में खेलने के दौरान मौत हो गई। उसे हार्टअटैक आ गया। इसी तरह जयपुर के एक १४ वर्षीय स्कूली बालक की भी हार्टअटैक से मौत हो गई। कोटा में एक फिटनेस गुरु की भी मौत आर्टरी में खून जमा होने के कारण हो गई। इसी तरह आगरा में एक दुकान में कार्यरत कर्मचारी की हार्टअटैक से मौत हो गई। मध्य प्रदेश में एक होटल में भोजन करते वक्त एक व्यक्ति को हार्टअटैक आ गया। हार्टअटैक की ये खबरें चिंतनीय हैं। इसका कारण बीपी, शुगर, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना माना जाता है। लेकिन छोटे बच्चों को अमूमन हार्टअटैक नहीं आता है। जिस बच्चे को हार्टअटैक आया, संभव है उसे पहले से कोई बीमारी हो। क्योंकि आजकल हम देखते हैं कि जिन बच्चों को खेल के मैदानों में होना चाहिए, वे कहीं कोने में बैठकर मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर पर चिपके होते हैं। वे सोशल मीडिया और गेम्स में व्यस्त रहते हैं। भागदौड़, खेलकूद जैसी शारीरिक गतिविधियों से वे दूर रहते हैं। मोबाइल और टीवी देखकर या वीडियो गेम्स खेलकर वे मानसिक तौर पर व्यस्त और तनावग्रस्त रहते हैं। बच्चों में स्मोकिंग, जंक फूड, बेवक्त खान-पान, अनहेल्दी लाइफस्टाइल, पढ़ाई का प्रेशर जैसे अनेक कारण हैं जो दिल की बीमारी का खतरा बढ़ा सकते हैं। वैसे तो पुरुषों में ४५ वर्ष और महिलाओं में ५५ की उम्र के बाद हार्टअटैक का खतरा बढ़ता है। ज्यादा एक्सरसाइज करना भी दिल के लिए खतरा ही होता है। सबको पता है कि कोरोनरी आर्टरी डिजीज के कारण दिल का दौरा पड़ता है। जब कोरोनरी आर्टरीज दिल की मांसपेशियों तक पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त खून नहीं पहुंचा पाती हैं तब हार्टअटैक आता है। छोटी उम्र में दौड़ने, साइकिल चलाने, खेलने से दिल की नींव मजबूत होती है। ऐसी एक्सरसाइज दिल को भरपूर पंप करती हैं। इसीलिए कहते हैं कि बच्चों को खूब खेलने देना चाहिए। उन्हें हर दिन दौड़ने, कूदने और खेलने के बहुत सारे मौके मिलने चाहिए। बच्चों को हर दिन कम से कम एक-डेढ़ घंटे शारीरिक गतिविधि जरूर करनी चाहिए। हमारे बचपन के दिनों में न मोबाइल था, न कंप्यूटर या टीवी। तब हम इतना खेलते थे कि हमारी दादी कहा करती थी, ‘खेलोगे कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब।’ यह पुरानी कहावत पढ़ाई की प्रेरणा देने के लिए सही थी। लेकिन आज के हर बच्चे खूब पढ़ाई करते हैं और जरूरत से ज्यादा ही करते हैं। उन्हें घर में वैâद करके रखना और पढ़ाई का बोझ लादना उनका समुचित विकास नहीं कर सकता। आज पढ़ाई के ढेर सारे संसाधन उपलब्ध हैं। ऐसे में बच्चों को सामाजिक ज्ञान, पारिवारिक संस्कार, खेल के मैदान से जुड़ाव और सामाजिक जीवन में बने रहने की शिक्षा देना भी बहुत आवश्यक है। बच्चों को सामाजिक कार्यों में, समूह में, खेल के मैदानों में जाने के खूब अवसर मिलने चाहिए। ताकि वे दिमाग ही नहीं दिल और शरीर से भी मजबूत बने रहें।

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