मैं ऊपरी मंजिल से उतर आया हूं
के ख्वाब के हर पर कुतर आया हूं
होश है के मैं हूं किसकी जद में
उम्मीद को ताज्जुब है के किधर आया हूं
वायदा झूठा करने को न राजी था मैं
झूठा वायदा करने से मुकर आया हूं
न पूछ हालात कैसा है मेरे अंदर का
मैं अपने दिलो-दिमाग से गुजर आया हूं
मुझे तलाश है खुद की अब भी
बड़ी मुश्किल से खुद को नजर आया हूं
मुझे रहने दे मुझमें लम्बे वक्त के लिए
ये दुनिया देख-देख कर घर आया हूं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी