सामना संवाददाता / मुंबई
विश्व के कई देश सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति के शिखर पर पहुंच गए हैं। देश के कई राज्य भी सरकारी कामकाज में सूचना प्रौद्योगिकी का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। हालांकि, इसमें शिंदे सरकार की बुराइयां ही नजर आ रही हैं। महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग ने खुद कबूल किया है कि शिंदे सरकार के शासनकाल में सरकारी तंत्र सरकारी सूचनाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने में अनिच्छुक रहते हैं।
महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग की १६वीं वार्षिक रिपोर्ट हाल ही में आयोजित बजट सत्र में पेश की गई थी। इस रिपोर्ट में सरकारी एजेंसियों के कामकाज को लेकर गंभीर टिप्पणियां दर्ज की गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिनियम की धारा ४(१) (सी) के अनुसार, प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत करना आवश्यक है। धारा ४(१) (बी) प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को १७ बिंदुओं पर जानकारी का खुलासा करने का प्रावधान करती है। यह जानकारी इंटरनेट सहित संचार के विभिन्न माध्यमों से लगातार अद्यतन और प्रकाशित होने की उम्मीद है। इस संबंध में राज्य मुख्य सूचना आयुक्त ने समय-समय पर सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा १९(८) के तहत सभी लोक प्राधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं, लेकिन आयोग द्वारा समय-समय पर की गई सुनवाई में यह स्पष्ट हो चुका है कि विभिन्न लोक प्राधिकारियों ने इसकी उपेक्षा की है। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि ये मामला बेहद गंभीर है।
‘आरटीआई’ की बढ़ेगी फीस
इस रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि मूल सूचना आवेदन, प्रथम अपील और द्वितीय अपील दाखिल करने के लिए ली जानेवाली फीस में बढ़ोतरी का प्रस्ताव केंद्र सरकार को सौंपा जाना चाहिए। इसके अलावा सिफारिशें की गई हैं कि राज्य सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए। इसके साथ ही एक ही विषय पर लगातार आवेदन करनेवाले आवेदकों के खिलाफ ठोस निर्णय लिया जाए और समय-समय पर सूचना का अधिकार प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
कनिष्ठ अधिकारियों को न बनाएं सूचना अधिकारी
वर्तमान में स्वीकृत १३८ पद आयोग की स्थापना से ही हैं। पिछले १५ वर्षों में आयोग के पास आनेवाले सूचना आवेदन, प्रथम अपील आवेदन, द्वितीय अपील आवेदन, शिकायतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसलिए रिपोर्ट में अतिरिक्त पदों को मंजूरी देने की सिफारिश की गई है। कई सार्वजनिक प्राधिकरणों ने बहुत ही कनिष्ठ स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों को सार्वजनिक सूचना अधिकारी, साथ ही प्रथम अपीलीय अधिकारी के रूप में नियुक्त किया है, लेकिन उन्हें अपेक्षित रिस्पॉन्स नहीं मिलता। इसलिए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वरिष्ठ अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी नियुक्त करना उचित होगा।