मुख्यपृष्ठसमाचारज्ञानवापी की तरह भोजशाला का भी होगा एएसआई सर्वे

ज्ञानवापी की तरह भोजशाला का भी होगा एएसआई सर्वे

सामना संवाददाता / भोपाल

मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला विवाद में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने बड़ा पैâसला सुनाया है। कोर्ट ने ज्ञानवापी की तरह ही इसका भी एएसआई सर्वे कराने का आदेश दिया है। हिंदू पक्ष की ओर से इसका पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की गई थी, जिस पर इंदौर हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद पैâसला सुरक्षित रख लिया था। हिंदू पक्ष ने यहां होने वाली नमाज पर भी रोक लगाने की मांग की थी।
भोजशाला को हिंदू पक्ष वाग्देवी यानी मां सरस्वती का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मस्जिद बताता है। इसे लेकर दोनों पक्षों में लंबे वक्त से विवाद चला आ रहा है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक है, जिसका नाम राजा भोज पर रखा गया था।
हिंदू संगठन ऐसा दावा करता है कि १३०५ ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था। बाद में १४०१ ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी। १५१४ ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी। बताया जाता है कि १८७५ में यहां पर खुदाई की गई थी। इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली। इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया। फिलहाल, ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है।
आखिर क्या है विवाद?
हिंदू संगठन भोजशाला को राजा भोज कालीन इमारत बताते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं। हिंदुओं का तर्क है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी। दूसरी ओर मुस्लिम समाज का कहना है कि वो वर्षों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं। मुस्लिम इसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं।
अयोध्या की तरह बनेगा सरस्वती मंदिर
मामले के याचिकाकर्ता अशोक जैन का कहना है कि जिस प्रकार से अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बना, ठीक उसी प्रकार से यहां मां सरस्वती का मंदिर बनेगा। हमारी मांग है कि वहां मां सरस्वती का पूजन करने दिया जाए। मां सरस्वती का मंदिर १०५० ईस्वी में राजा भोज ने बनवाया था। बाद में इसे आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था।

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