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सीएए तो बहाना है … चुनावी चंदा छुपाना है!

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फजीहत से बचने के लिए केंद्र ने खेला है नागरिकता संशोधन का पासा

२०१९ के चुनाव से पहले भी छोड़ा था शिगूफा; पांच साल की चुप्पी पर सवाल

लोकसभा चुनाव के पहले जब केंद्र सरकार चुनावी बॉन्ड के विवाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने शर्मसार हो रही थी, तभी अचानक सीएए का बम फूटा। सरकार ने इस कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। राजनीति के जानकार आसानी से कयास लगा सकते हैं कि सरकार नहीं चाहती थी कि देश चुनावी बॉन्ड पर चर्चा करे क्योंकि इससे उसकी छवि खराब हो रही है। इसलिए उसने इलेक्टोरल बॉन्ड की फजीहत से बचने के लिए सीएए का पासा फेंक दिया है।
गौरतलब है कि २०१९ के चुनाव के पहले भी भाजपा ने सीएए का शिगूफा छोड़ा था। इसके बाद दिसंबर २०१९ में सीएए कानून बना था। तब देशभर में इसका जबरदस्त विरोध हुआ था। इस कानून का विरोध होते देख सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इसके बाद सरकार ने चुप्पी साध ली थी। सरकार ने चुनावी बॉन्ड के तहत चंदा देनेवालों का नाम गुप्त रखने का जो एजेंडा लागू किया था, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी धज्जियां उड़ा दीं। ऐसे में भाजपा को लगा कि कुछ कॉर्पोरेट हाउसों के साथ उसके चुनावी चंदे की लेन-देन का मामला सार्वजनिक होने से मीडिया उसे बड़ा मुद्दा बना लेगा और मीडिया और देश के सामने उसकी खासी फजीहत होगी। ऐसे में सबसे आसान काम है कि मीडिया को कोई ऐसा मुद्दा दे दो ताकि वह उसमें व्यस्त हो जाए और लोगों का ध्यान चुनावी बॉन्ड की ओर से हट जाए। अब हो भी कुछ ऐसा ही रहा है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद एसबीआई ने २४ घंटे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ा डेटा चुनाव आयोग को दे दिया पर मीडिया में सीएए छाया हुआ है। राजनीतिक दलों के नेतागण भी सीएए पर बयान देने में उलझ गए हैं। देश में दिल्ली, यूपी और असम सरीखे राज्यों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है और उन जगहों की सुरक्षा काफी बढ़ा दी गई है। विपक्ष ने केंद्र की इस हरकत को आड़े हाथ लिया है और एक स्वर में सभी नेताओं ने इसकी निंदा करते हुए सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि दिसंबर, २०१९ में संसद द्वारा पारित सीएए के नियमों को अधिसूचित करने में मोदी सरकार को चार साल और तीन महीने लग गए। प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उनकी सरकार बिल्कुल पेशेवर और समयबद्ध तरीके से काम करती है। सीएए के नियमों को अधिसूचित करने में लिया गया इतना समय प्रधानमंत्री के सफेद झूठ की एक और झलक है। उन्होंने आरोप लगाया कि सीएए के नियमों को अधिसूचित करने के लिए नौ बार समय-सीमा बढ़ाने की मांग के बाद, इसकी घोषणा करने के लिए जानबूझकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले का समय चुना गया है। रमेश ने दावा किया कि ऐसा स्पष्ट रूप से चुनाव को ध्रुवीकृत करने के लिए किया गया है, विशेष रूप से असम और बंगाल में। यह चुनावी बॉन्ड घोटाले पर उच्चतम न्यायालय की कड़ी फटकार और सख्ती के बाद, ‘हेडलाइन को मैनेज करने’ का प्रयास भी प्रतीत होता है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जनता भाजपा की ध्यान भटकाने की राजनीति को समझ चुकी है। उन्होंने कहा कि जब देश के नागरिक रोजी-रोटी के लिए बाहर जाने पर मजबूर हैं, तो दूसरों के लिए ‘नागरिकता कानून’ लाने से क्या होगा? जनता अब भटकावे की राजनीति का भाजपाई खेल समझ चुकी है। भाजपा सरकार ये बताए कि उनके १० वर्षों के राज में लाखों नागरिक देश की नागरिकता छोड़ कर क्यों चले गए? यादव ने कहा कि चाहे कुछ हो जाए, कल चुनावी बॉन्ड का हिसाब तो देना ही पड़ेगा और फिर ‘केयर फंड’ का भी।’ माकपा के वरिष्ठ नेता और केरल के सीएम पिनराई विजयन ने सीएए को सांप्रदायिक विभाजन करने वाला कानून बताया और कहा कि इसे राज्य में लागू नहीं किया जाएगा। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अगर सीएए लोगों के समूहों के साथ भेदभाव करता है, तो वह इसका विरोध करेंगी और इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगी।

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