मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : बिकास के भोंपू

अवधी व्यंग्य : बिकास के भोंपू

एड. राजीव मिश्र मुंबई

जवाहिर अखबार मा आँख गड़ाए एक-एक खबर का अइसन चुसि रहें हैं जइसन अखबार पढ़य के बाद जवाहिर के सीधा सरकार के बुलावा आई जाइ कि आओ भैया आइ के तुहई ई देश चलाओ। अबहीं दुसरय पन्ना पर पहुँचे रहे कि तबै खेलावन आई गए। का हो जवाहिर! का कहि रहा है आज के अखबार? जवाहिर के कान मा तो खेलावन के आवाज पहुँची लेकिन दुइ तिहाई बहुमत वाली सरकार की तरह खेलावन के कउनउ जबाब नही दिए। कउनउ सरकारी इसकीम आवा है का भयवा नही बोलत हौ? हाँ, १५ लाख सबके खाता में आवै के घोषणा भई है लेइहौ? अरे, अरे काहे चिचियात हौ भईया, खबरै तो पूछा है, कउनउ तोहरे घर के कब्जा तो मांगा नही है। तू का घर के कब्जा मंगिहौ, इहाँ खुदय सांस अटकी परी है पूरे प्रदेश में बुलडोजर पागल हाथी की तरह घुमि रहा है। बस एक कम्पलेन भवा अउर घर धूरि होइ जाइ। काहें तू तो अपने जमीन पर घर बनाये हौ न? कौन ई गाँव मा अपने जमीन पर घर बनाये हव? सभय तो आबादी अउर ग्राम समाज की जमीन पर घर बनाये हव? अब हमका एक बात बताओ ग्राम समाज के पास जमीन कहाँ से आवा है? चकबंदी में हम सभय के जमीन के कटौती कइके ग्राम समाज के जमीन तैयार भवा है अब इहपे भी घर बनइहौ अउर सरकार के खिलाफ बोलिहौ तो सरकार तोहका उच्छिन्न कइ देइ ई कहिके की ई तो सरकारी जमीन है। तू यार जवाहिर विपक्ष के भाषा बोलि रहे हौ, सरकार केतना काम कय रही है अउर तो अउर अब तो सीएए भी आइ गवा है अब देखो कईसन ई देश के घनघोर बिकास होत है। जवाहिर अखबार फेकि के आपन कपार पीटि लिहे, अरे बिकास कुमार, एक ओर तू अपनी जमीन से ग्राम समाज पइदा कइके आबादी बनायो ओहिके बाद वहि आबादी पर घर बनायो अब तोहार घर धूरि-धूरि होइ जात है अउर तू सीएए के भोंपू बजाय रहे हो। देश के लोगन के घर माटी मा मिला जात है अब जे बाहर से आई सरकार ओहिके कहाँ बसाई बताओ? जवाहिर के बात सुनिके खेलावन के मानो लकवा मारि गवा होय। काफी देर के बाद धीरे से उठे अउर बिना कुछ बोले निकरि गए।

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