लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा की भाजपा सरकार अस्थिर हो गई है। मनोहरलाल खट्टर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। नायब सैनी हरियाणा के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं। हालांकि, उन्होंने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया है लेकिन सरकार चलाते समय उन्हें काफी समझौते करने पड़ेंगे। हरियाणा की भाजपा सरकार दुष्यंत चौटाला पर टिकी हुई थी। चौटाला की ‘जननायक पार्टी’ के १० सांसद खट्टर सरकार का समर्थन कर रहे थे। भाजपा के पास जरूरी बहुमत नहीं था इसलिए भाजपा ने दुष्यंत को उपमुख्यमंत्री पद और महत्वपूर्ण विभाग देकर सरकार बना ली थी। चौटाला ने भी इस दौरान अपने समर्थन की पूरी-पूरी कीमत वसूल की और भ्रष्टाचार को खुली छूट दे दी। हरियाणा में ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ जैसे नारे का ठीक उलटा होता रहा और चौटाला का बोझ खट्टर पर इतना भारी हो गया कि उनकी स्थिति न तो सह सकते हैं और न बोल सकते हैं जैसी समाधिस्थ सी हो गई थी। चौटाला ने विधान सभा में दस सीटें जीतीं और उनकी किस्मत खिलखिला उठी। क्योंकि भाजपा को विधानसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला। भाजपा ने चौटाला को अपने साथ लिया और परिवार के खिलाफ पिछले सभी भ्रष्टाचार के आरोपों को वॉशिंग मशीन में धो दिया। बीच के दौर में दुष्यंत चौटाला की पार्टी को तोड़ने का खेल चला, लेकिन अब जब भाजपा ने यह स्थिति बना ली कि लोकसभा चुनाव में चौटाला की जजपा को एक भी सीट नहीं दी जा सकती, तो जजपा ने सरकार छोड़ दी और खट्टर को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हरियाणा में भाजपा सरकार ‘जजपा’ की वजह से संघर्ष कर रही है। यह सच है कि इस सरकार ने बुधवार को बहुमत साबित कर दिया, लेकिन यह साफ है कि भाजपा ने इसकी ‘कीमत’ चुकाई। हो सकता है कि उन्हें बड़ी रकम चुकाकर निर्दलियों का समर्थन हासिल करना पड़ा हो। चूंकि ‘खोकेबाजी’ के माध्यम से सरकारें गिराने और वहां पर भाजपा की सत्ता स्थापित करने जैसे मामले में भाजपा अनुभवी है इसलिए हरियाणा में भाजपा की ही सरकार रहेगी। सिर्फ यह देखना बाकी है कि सरकार बचाने के लिए कितने करोड़ का खेल खेला गया और आगे भी होता रहेगा। खट्टर चले गए और नायब सैनी आ गए तो भी हरियाणा के किसानों और मजदूरों की जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। साथ ही ढलान पर जा रही भाजपा की ट्रेन वहां नहीं रुकेगी। हरियाणा के दो मौजूदा भाजपा सांसदों ने हाल ही में इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस की राह धर ली। ये संकेत क्या कहते हैं? देशभर में जहां तमाम भ्रष्ट और अपराधी भाजपा में शामिल हो रहे हैं, वहीं हरियाणा में उल्टी गंगा बह रही है। वहां भाजपा सांसद टूट गए और मुख्यमंत्री खट्टर पर गाज गिर गई। यह सब ईडी आदि की धमकियों के सामने न झुकते हुआ। भाजपा दूसरे राज्यों में जो करती और करवाती है वही हरियाणा में उनके साथ हुआ है। बिहार में भाजपा ने नीतिश कुमार को तोड़कर अपनी सरकार बनाई। महाराष्ट्र में भी उन्होंने इसी तरह की तोड़-फोड़ की राजनीति की। अब हरियाणा में बहुमत चुराकर नए मुख्यमंत्री को विजेता घोषित कर दिया गया है। बेशक, इस बात की पूरी संभावना है कि हरियाणा में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होंगे। कुछ भी हो हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं रहे। ‘आप’ और कांग्रेस ने गठबंधन कर ही लिया है इसलिए आज की तस्वीर यह है कि ‘इंडिया अलायंस’ के लोग हरियाणा में कम से कम आठ लोकसभा सीटें जीतेंगे और विधानसभा में भाजपा नहीं जीत पाएगी और कांग्रेस को बहुमत मिल जाएगा। जनता ने तय कर लिया है और उसी के अनुरूप भाजपा की बुरी गत कर दी जाएगी। हरियाणा में जाट समुदाय बड़ी संख्या में है। भाजपा ने अपने स्वार्थ के लिए जाटों और अन्य लोगों के बीच झगड़ा शुरू करवा दिया। महाराष्ट्र में मराठा बनाम ओबीसी का झगड़ा इसी तरह से लगाया गया। हरियाणा के किसान भाजपा के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। पंजाब के किसानों को हरियाणा बॉर्डर पर बंदूक की नोक पर रोका गया है। लेकिन विस्फोट कभी भी हो सकता है। खट्टर का कार्यकाल कार्यअक्षम रहा। खट्टर हरियाणा के पहले गैर-जाट मुख्यमंत्री बने। वे संघ के प्रचारक थे और उसी योग्यता के आधार पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन वे राजनीतिक संकट में फंस गए और उन्हें जाना पड़ा। हरियाणा में ताजा राजनीतिक घटनाक्रम का सारांश क्या है? वह यह कि भाजपा जरूरत के हिसाब से अपने मित्रदलों का इस्तेमाल करती है और फेंक देती है। चार साल पहले हरियाणा में दुष्यंत चौटाला का समर्थन लेते वक्त उनसे प्यार की झप्पियां लगार्इं। ये दोस्ती अमर है, ऐसा कहा गया। चार साल पहले ऐसा माहौल तैयार किया गया कि जैसे अब हरियाणा में क्रांति होने ही वाली है, लेकिन चार साल में भाजपा ने चौटाला की पार्टी को कमजोर करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा और अब झटका दिया कि दुष्यंत को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिलेगी। जिसके चलते जननायक पार्टी की हालत ‘न घर का न घाट का’ जैसी हो गई। दुष्यंत चौटाला की तरह महाराष्ट्र में भाजपा के दो नए दोस्त भी हताश और निराश नजर आ रहे हैं। नकली शिवसेना के चंगू और ढोंगी? राष्ट्रवादी कांग्रेस के मंगू को लोकसभा चुनाव में मनचाही सीटें नहीं मिलेंगी। उन्हें दिल्ली के गुजराती भाइयों द्वारा फेंके गए ढोकला-फाफड़े से ही संतुष्ट होना पड़ेगा। जब ऐसा होगा, तो ‘हम असली हैं’ कहने की उनकी ऐंठ निकल जाएगी। चंगू-मंगू की हालत पुराने जमाने की नगरवधू जैसी हो गई है। भाजपा ने सिंदूर लगाया, अपना मंगलसूत्र बांधा, लेकिन सच तो यह है कि जनता के बीच उनका कोई सम्मान नहीं है। भाजपा का हर मित्रदल ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ का अनुभव ले चुका है। शिवसेना भी उस उथल-पुथल से बाहर निकली और आज फिर से स्वाभिमान के साथ खड़ी हुई है। चौटाला की ‘जननायक पार्टी’ को भाजपा ने क़ढ़ी पत्ते की तरह बाहर कर दिया। यह समय जल्द ही महाराष्ट्र के कढ़ी पत्तों पर आएगा। जनता उस दिन का इंतजार कर रही है।