मनमोहन सिंह
गाजा में इजराइली फौज द्वारा डॉक्टर के साथ की गई दरिंदगी की रिपोर्ट पढ़ने के बाद राशाद के दिमाग में कई सवाल कौंधने लगे थे। वह परेशान हो उठा। उसने मैगजीन बगल में रख दी और एक लंबी सांस ली। वह कुछ सोचने लगा था।
`राशाद… कुछ लोग आपसे मिलने आए हैं।’ नर्स की आवाज सुनकर उसकी तंद्रा भंग हुई। उसने नर्स की तरफ देखा। नर्स के साथ तीन लोग खड़े थे। तीनों ऊंचे कद के थे। उसने उनमें से एक ने आगे बढ़कर अपना परिचय देते हुए कहा, `हैलो राशाद। माइसेल्फ जेहाद अल हुसैन एसोसिएटेड विद एसएसएमएफ, द सीरियन स्पेशल मिशन फोर्सेज। आप सीरिया छोड़कर तुर्की में आ गए, लेकिन आप भूल गए कि आपने कभी वहां की हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी…’ राशाद का चेहरा सफेद पड़ गया। उसे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरह रिएक्ट करे।
`… आपको शायद गलतफहमी है ऑफिसर,’
`…. गलतफहमी और हमको? ऐसा नहीं हो सकता। यह तो मेरी इंसानियत हैकिग मैं अपना परिचय दे रहा हूं और आपसे बात कर रहा हूं मेरी जगह कोई दूसरा होता तो आपको कब का यहां से लेकर चला गया होता। आप क्या कर सकते थे?’ उसने राशाद की आंखों में झांकते हुए पूछा। रक्षक था, वह जानता था सीरिया में इस फोर्सेज के पास कितने पावर हैं।
`अब आप अपने आपको तैयार कर लीजिए और हमारे साथ चलिए’
लेकिन इस देश से उन्हें कैसे ले जा सकते हैं? नर्स ने सवाल किया, जो सारी बातचीत सुन रही थी। वह राशाद की तरफ बेचारगी भरी निगाहों से देख रही थी। इतने दिनों तक वह उसके साथ थी। उसे उसकी बातचीत करने का अंदाज गाने का अंदाज और मासूमियत अच्छी लगने लगी थी।
उसने कहा, `आपको हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन से बात करनी होगी सर।’
`आप बेफिक्र रहिए मैडम हमने सारी तैयारी कर ली हैं।’ उसके शब्द खत्म होते-होते एक वार्ड बॉय राशाद की फाइल लेकर आ गया। उस फाइल को देखकर नर्स बड़ी हैरान थी, क्योंकि फाइल में राशाद के डिस्चार्ज पेपर तैयार थे।
`आप कपड़े बदल लीजिए।’ यह एक तरह से आदेश था। राशाद के पास उसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था। नर्स उसके कपड़े ले आई। कपड़ों में खून लगा हुआ था, जो सूख गया था। उसने कपड़ों की तरफ देखा बिल्कुल पहनने लायक नहीं थे। नर्स खामोश थी। उसने चुप्पी तोड़ी। `अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक बात कहूं?’ उसने कहा।
राशाद ने उसकी तरफ देखा, जैसे वह कह रहा हो `पूछो…’
`आप मेरे साथ आइए…’ उसने कहा।
राशाद उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अलमारी के पास रूकी। उसने चाबी से अलमारी का दरवाजा खोला। उसमें एक पैकेट पड़ा हुआ था। पैकेट निकाल कर राशाद के हाथों में देते हुए बोली, `ये कपड़े मैंने अपने एक दोस्त के लिए खरीदे थे… उसके बर्थडे पर गिफ्ट देने के लिए… लेकिन मुझे वक्त नहीं मिल पाया और वह भी नहीं आ पाया… शायद यह कपड़े आपके लिए ही बने थे। नसीब आपका। अब आप मना न करें।’
न चाहते हुए भी राशाद के हाथ आगे बढ़ गए, उसने वह पैकेट ले लिया।
`आप बेफिक्र रहें। मुझे पूरा यकीन है कि आप बिल्कुल बेदाग साबित होंगे। मैं अल्लाह से दुआ करुंगी कि वह आपकी परेशानी दूर करें और… और आपको खुशगवार जिंदगी अता करें’ कहते-कहते नर्स की आवाज भीग गई थी। राशाद इमोशनल हो गया था। वह खुद को वहां पर रोक नहीं पाया। १० मिनट बाद राशाद उनके साथ उनकी गाड़ी में था। गाड़ी तेजी से दौड़ रही थी, उसे पता नहीं था कि उसे कहां ले जाया जा रहा है।
क्रमश: