मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : हम अष्टभुजा नहि दू भुजा बाली रह चाहइ छी

मैथिली व्यंग्य : हम अष्टभुजा नहि दू भुजा बाली रह चाहइ छी

डॉ. ममता शशि झा मुंबई

सुनीता ऑफिस में महिला दिवस के कार्यक्रम के आयोजन में व्यस्त रहला के कारण व्हाट्सएप पर आयल मैसेज के नहि देखि सकल छलि, घर आबि काज संपन्न के फोन चेक करे लगली ते विभिन्न तरह के स्त्री के प्रशंसा बला मैसेज से फोन भरल छलनि, मोन में सोचलथी काश अहि में से येक्कहु टा बात के स्त्री के लेल रोजमर्रा के जीवन में दुईयो दिन याद राखि के व्यवहार में आनथी, त स्त्री अपना जीवन के सार्थक मानती। मैसेज देखथि काल सबसे बेसि ध्यान गेलनि जाहि में स्त्री एकटा हाथ में बेलन, दोसर में मोबाइल फोन, तेसर में झाड़ू, चारिम में लैपटॉप, पाँचम में कड़छुल, छट्ठम में, जिम के डंबल्स, सातम में ड्राइविंग करइत, आ आठम से बच्चा के दूध पियाबाइत। इ चित्र देखि के मोन आल्हादित नहि भेल, किंतु अवसाद से भारि गेल।
विचार उठल जे महिला सशक्तिकरण के नाम पर स्त्री के माथ पर सबटा काज के बोझ दे के पुरूख अपना आप के कतेक चालाकी से बहुत सारा काज से मुक्त के लेलक। हम त बुझिये नहि पाबि रहल छी जे इ सशक्त केनाई छइ की अशक्त?
हमरा याद अछि जे हमर मां घरक काज देखइ छल आ बाबूजी बाहर के, अहि तरह से दुनु गोटे के व्यवहार में गजब के संतुलन छलनि, मुदा समय के परिवर्तन के संगे आर्थिक और सामाजिक संबलता के नाम पर पीठ थपथपा के बोझ बढ़ा मानसिक चिंता में वृद्धि के विभिन्न तरहक असंतुलन समाज में व्याप्त भे रहल अछि। ओहि मैसेज के देखि मोन में और किछु भाव उठल जे हम अष्टभुजा नहि दू भुजाबाली बनि रह चाहइ छी, किछु विशेष नहि बस पुरुष जंका एक बेर में येक्कहि टा काज करे चाहइ छी, चाय के चुस्कि के संग भोरका अखबार सोफा पर पलथि मारि के पढ़ चाहइ छी, अहिं जांका अखबार पढ़ काल में हमरा दुआरा पुछल बात के अनसुना करे चाहइ छी। टी.वी. देख काल मटर छीलबाक, साग तोड़बाक काज से अपन हाथ के मुक्त राखि, भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा चौका, छक्का मारला पर थपड़ी पिट के हर्ष प्रकट कर चाहइ छी।
सोच में डुबल छलहुं, तहने बौआ के कानब सुनि ध्यान ओहि दिस गेल, बगल में फोंफ कटइत पतिदेव दिस देखइत, बच्चा कें कोरा में लइत मोन में विचार उठल, स्त्री भुजा में जहन पुरुष के दू टा भुजा मिल जायत ते स्त्री अष्टभुजा नहि दू भुजा बला रूप में सार्थक जीवन जी पायत!!!

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