ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा सूची में हर साल जुड़ रहे ५-६ हजार मरीज
सामना संवाददाता / मुंबई
किडनी फेल होने के बाद मरीज और उसके परिजन किडनी ट्रांसप्लांट के लिए भागदौड़ शुरू कर देते हैं। हालांकि, मौजूदा समय में किडनी की आवश्यकता और प्रत्यारोपण के लिए उसकी वास्तविक उपलब्धता के बीच का अंतर कई गुना अधिक है। इस वजह से प्रतीक्षा सूची के मरीज किडनी पाने की उम्मीद में वर्षों बिता देते हैं। इसके चलते राज्य में रोजाना करीब एक, जबकि साल भर में वेटिंग लिस्ट में शामिल करीब चार सौ मरीजों की ट्रांसप्लांट के अभाव में मौत हो रही है। इसके साथ ही हर साल ५ से ६ हजार मरीज किडनी की प्रतीक्षा सूची में शामिल हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में चार संभागीय अंग प्रत्यारोपण समन्वय समितियां हैं। इसमें मुंबई के साथ पुणे, नागपुर और छत्रपति संभाजीनगर की डिविजनल ट्रांसप्लांट समितियां शामिल हैं। राज्य पर गौर करें तो हर साल किडनी वेटिंग लिस्ट के मरीजों की संख्या करीब ५ से ६ हजार है। पिछले वर्ष राज्य में १४८ ब्रेन डेड व्यक्तियों का अंगदान किया गया। इससे प्रतीक्षा सूची में दिन-ब-दिन बढ़ोतरी और प्रत्यारोपण के लिए किडनी सहित अन्य अंगों की उपलब्धता के बीच भारी अंतर हो गया है। सूत्रों के मुताबिक राज्य में साल २०२० से २०२३ तक किडनी ट्रांसप्लांट वेटिंग लिस्ट के १,७३१ मरीजों की मौत हो चुकी है।
अंगदान पर जन जागरूकता की जरूरत
आम नागरिकों के साथ-साथ चिकित्सा क्षेत्र में भी अंगदान के प्रति जन जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान में डॉक्टर की पहल के साथ-साथ परिजनों की सहमति भी महत्वपूर्ण होती है। अंगदान से दूसरों को नई जिंदगी मिल सकती है। यह बात हर किसी तक पहुंचने की जरूरत है। पुणे विभागीय अंग प्रत्यारोपण समन्वय समिति की समन्वयक आरती गोखले का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में अंग दान के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है।
डायलिसिस से होते हैं दुष्प्रभाव
चिकित्सकों का कहना है कि किडनी फेल होने के बाद मरीज को डायलिसिस कराना पड़ता है। लंबे समय तक डायलिसिस से मरीज के शरीर पर कई दुष्प्रभाव पड़ते हैं। इससे मरीज की मौत भी हो सकती है। यदि अंगदान के प्रति जन जागरूकता बढ़े तो प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे मरीजों को नई जिंदगी मिल सकती है।