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नौनिहालों में तेजी से बढ़ रहा बहरापन! …हर १० हजार में ३० बच्चे जन्मजात बहरेपन का शिकार

अभिभावकों से सावधानी बरतने की सलाह
सामना संवाददाता / मुंबई
बीते कुछ सालों से देश में बच्चों के पैदाइशी बहरेपन की समस्या देखी जा रही है। जेजे अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के चिकित्सकों का कहना है कि हर साल हिंदुस्थान में १० हजार में से ३० बच्चे इस गंभीर समस्या से प्रभावित होते हैं। कुल मिलाकर जन्मजात बहरापन नौनिहालों की जिंदगी में जंजाल बन गया है। ऐसे में चिकित्सकों ने सलाह दी है कि अभिभावक इस समस्या को लेकर सावधानी बरतें और समय पर इलाज कराएं।
उल्लेखनीय है कि हिंदुस्थान में १०,००० में से ३० बच्चे जन्मजात बहरेपन के शिकार होते हैं। जेजे अस्पताल की डीन डॉ. पल्लवी सापले ने कहा कि वाणी विकास की सबसे महत्वपूर्ण अवधि जीवन के पहले दो से तीन वर्षों में होती है। इस समय यदि बच्चे की सुनने की क्षमता कम हो गई है, तो भाषा विकास की प्रक्रिया में देरी हो जाती है। ऐसे में इसे सामान्य रूप से विकसित करने के लिए ऑडियोटरी प्लास्टिसिटी का सहारा लेना पडता है, जो श्रवण प्रणाली को बढाने का काम करता है।
ये पैदा कर सकते हैं जन्मजात बहरापन
मातृ संक्रमण जैसे टोक्सोप्लाजमोसिज, रूबेला, साइटोमेगालोवायरस, खसरा और दाद जन्म के समय बहरापन पैदा कर सकते हैं। भले ही बच्चा श्रवण यंत्रों के साथ सुनने में सक्षम हो जाता है, फिर भी उसे बोलने के लिए एक गहन स्पीच थेरेपी की जरुरत होती है। नवजात शिशुओं के लिए सामान्य श्रवण स्क्रीनिंग परीक्षण, बड़ी उम्र के बच्चों के लिए डॉक्टर का मूल्यांकन और टिम्पेनोमेट्री, इमेजिंग टेस्ट जरूरी है, क्योंकि श्रवण बच्चे के विकास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ये हैं लक्षण
माता-पिता को श्रवण विकार का संदेह हो सकता है यदि बच्चा ध्वनियों के संबंध में प्रतिक्रिया नहीं करता है या बच्चे को बात करने या बोलने में देरी होती है। कभी-कभी बच्चे उनसे बात करने वाले व्यक्तियों को नजरअंदाज करते हैं। बच्चे घर पर अच्छी तरह से बात करने और सुनने में सक्षम होते हैं, लेकिन स्कूल में वे ऐसा नहीं कर पाते हैं, क्योंकि हल्के या मध्यम श्रवण विकार के कारण समस्याएं कक्षा के पृष्ठभूमि शोर के बीच में ही हो सकती हैं।

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