मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य :   फूलों में सज रहे हैं...!

ब्रजभाषा व्यंग्य :   फूलों में सज रहे हैं…!

द्वापर जुग की बात हतै किसन जी, किसोरी जू सौं भौत दिन’न तलक नाँय मिले। जा सौं किसोरी जू उदास रहम’न लगीं। बिनके उदास होते ई विन्दावन के सबरे फूल मुरझाय गये। पेड़ सूख’न लगे। डारियां टूट’न लगीं। किशोरी जू की उदासी देखकें पंछिन नें ऊ चैकनों बंद कर दीयौ। जमुना जी की जल धारा हू रुक गयी जासूं विन्दावन मै हू उदासी छा’न लगी। किसन सूं न मिलबे की वजै सूं किसोरी जू उदास रहम’न लगीं। जा बात वूँâ देखकें गोपी हू भौत उदास रहम’न लगीं। किसोरी जू बस्स अपने किसन के दरसन की आस लगायें बैठी रहमतीं। किसोरी जू न तौ कछू खामती औरु नाँय ई जल पीमतीं। जब बिनके किसन नें विन्दावन की जे दसा देखी तौ बिनकूं आभास भयौ की जे सब किसोरी जू के कारन ही है रह्योए। किसोरी मोवूँâ पुकार रही हतै औरु उदास अस्थिती मै रै रई एँ जासूं विन्दावन मै कली-कली मुरझाय गयी हतें। ऐसी दसा देखकें किसन जी विन्दावन के लियें निकस परे औरु वे किसोरी जू सौं मिलबे के तांर्इं विन्दावन आमन लगे। जैसे ई काना के आइबे की खबर किसोरी जू के कानन मै परी, वैसे ई किसोरी जू के चैरा पै मुस्कान आय गयी। बिनकौ चैरा फूल की नार्इं खिल उठौ। किसोरी जू के चैरा के खिलबे के संग ही फूल खिलन लगे, पक्षी चैचान लगे, पेड़ हरे-भरे है गये। सबरी गोपी हू खुश है गयीं। काना किसोरी जू सौं मिले, बिनसूं मिलकें किसोरी जू भौत प्रसन्न भयीं। काना नें जौरें की डार सूं फूल तोरौ औरु किसोरी जूं पै फेंको। यै देखकें किसोरी जू हू काना पै फूल फेंकन लगीं। सबरे गुआला औरु गोपी हू एक-दूसरेन पै फूल फेंकन लगे जा तरियाँ विन्दावन मै तौहार है गयौ। बा दिना फुलेरा दौज हती, तब सौं ही बिरज मै फूलन की होरी खेलबे की सिरुआत भयी एॅ। जहाँ सबरी दुनिया परंपरा के नाम पै इक दिन होरी खेलै महीं बिरज मै सात दिना तलक सब जगें प्रेम कौ वेग भरपूर देखबे कौं मिलै। तबी तौ आज-
फूलों में सज रहे हैं, सिरी विन्दावन बिहारी।
और संग सज रही हैं, वृषभान की दुलारी।।

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