मुख्यपृष्ठस्तंभदेश का मूड : हकीकत में बेड़ा गर्क है!

देश का मूड : हकीकत में बेड़ा गर्क है!

अनिल तिवारी

१० वर्षों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बातें भूल चुकी है। बीते १० वर्षों में पार्टी ने भ्रष्टाचारियों की शरणगाह के रूप में छवि विकसित कर ली है और अविश्वसनीय नेतृत्व के रूप में वो कुख्यात भी हो चुकी है।’

जब से आचार संहिता लागू हुई है, तब से भारतीय जनता पार्टी और उसकी आईटी सेल जीत के बड़े-बड़े दावे कर रही है। प्रचारित किया जा रहा है कि भाजपा इस बार ४०० सीटों पर जीत हासिल करेगी और इसके लिए २०१४ और २०१९ के चुनावों का संदर्भ भी दिया जा रहा है। परंतु ऐसा करते समय यह भुला दिया गया है कि चुनाव और क्रिकेट में आंकड़े कभी भी पलट
सकते हैं। कागजों पर मजबूती कितनी भी दिखे, हकीकत में बेड़ा गर्क हो ही सकता है।
२०१४ से २०२४ की परिस्थितियां एकदम भिन्न हैं, इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता। २०१४ उम्मीद का चुनाव था और २०२४ निराशा की प्रतिक्रिया होगी। इन १० वर्षों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बातें भूल चुकी है। बीते १० वर्षों में पार्टी ने भ्रष्टाचारियों की शरणगाह के रूप में छवि विकसित कर ली है और अविश्वसनीय नेतृत्व के रूप में वो कुख्यात भी हो चुकी है। चंडीगढ़ मेयर का चुनाव हो या इलेक्टोरल बॉन्ड का मसला, हर बार नई भाजपा ने साबित किया है कि उसका सरोकार सबके विकास का नहीं, बल्कि खुद के विकास का ही है। उसे आम आदमी और उसकी जरूरतों से कोई सरोकार नहीं है। १० वर्षों के कार्यकाल के दौरान उसका जमीन से कटाव हुआ है और वो केवल और केवल कुछ कॉर्पोरेट घरानों की सरकार बनकर रह गई है। तेल की बढ़ती कीमतों, बेरोजगारी और कमरतोड़ महंगाई जैसे मुद्दों से उसका कोई वास्ता नहीं रहा है। उल्टे वह जीएसटी और नोटबंदी से समाज के निचले व मध्यमवर्गीयों के साथ-साथ उच्च मध्यमवर्गीयों को भी मार रही है। वह तेल की कीमतों के लिए जनता का तेल निकाल रही है। यही जनता के ‘मन की बात है’, जो इस चुनाव में सामने आने को बेताब है।
भाजपा भले यह जतलाने का प्रयास करे कि २०१४ में उसने ४२७ सीटों पर लड़कर २८२ पर जीत हासिल की थी व उसका स्ट्राइक रेट ६६ फीसदी का रहा था, पर वो यह बतलाने से चूक जाती है कि इन ४२७ में से ३१८ सीटें उसने केवल हिंदी पट्टे में लड़ी थीं, जिनमें २२५ पर उसकी जीत हुई थी, उस पट्टे में आज उसकी हालत खराब है। किसान, मजदूर और युवा सभी परेशान हैं। सभी भाजपा के जुमलों से तंग आ चुके हैं और बदलाव के मूड में हैं। उत्तर भारत के सभी राज्यों में विपक्ष की मजबूती का यही कारण है। उस पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने संयुक्त विपक्षी उम्मीदवारों की नीति से भाजपा की नींद उड़ गई है। लिहाजा, तमाम सर्वे भाजपा को हिंदी पट्टे में इस बार १४०-१४२ सीटों से अधिक पर जीतते हुए नहीं बता रहे हैं। हो सकता है भाजपा को यहां १०० से भी अधिक सीटों का नुकसान हो जाए, जो उसे सत्ता से बाहर करने में महत्वपूर्ण भूूमिका अदा करेगा।
भले ही भाजपा इस बार अपने मित्र दलों की कुछ सीटें हथिया कर ४३०-४४० सीटों पर चुनाव लड़ ले तब भी वो हर हाल में ९० से १०० सीटों के नुकसान में रह सकती है। महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, ओडिशा, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और संपूर्ण दक्षिण भारत में उसको जबरदस्त झटका लगने जा रहा है। किसी क्षेत्र में उसने थोड़ा बहुत डैमेज कंट्रोल कर भी लिया, तब भी उसे कुल मिलाकर २००-२२० सीटों से अधिक मिलती हुई नजर नहीं आ रही हैं। २०१९ की ३०३ सीटों का रिकॉर्ड तोड़ना तो दूर, इस बार वो ‘शाइनिंग इंडिया’ के दौर की हार के समकक्ष न चली जाए, इसका आला कमान को लगातार डर सता रहा है तभी तो आनन-फानन में वो अपनी चुनावी बस में सभी दागी-रागी और अनुरागियों को चढ़ाते जा रही है, उनसे गठबंधन किए जा रही है। परंतु ये गठबंधन भी उसे किसी भी हाल में सत्ता वापसी नहीं करा सकेंगे। मतदाताओं के मूड से तो यही लग रहा है। हकीकत में बेड़ा गर्क ही लग रहा है।

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