मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : रशिया में फिर तानाशाही!

संपादकीय : रशिया में फिर तानाशाही!

रशिया में उम्मीद के मुताबिक व्लादिमीर पुतिन पांचवीं बार राष्ट्रपति बन गए हैं। बेशक, इस जीत में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पुतिन ने जिस तरह से वहां का संविधान बदला था, उसके मुताबिक वह हमेशा के लिए रूस के राष्ट्रपति बने रहनेवाले थे। और फिर चुनाव भी एकतरफा हुआ, इसलिए पुतिन की जीत महज एक औपचारिकता थी। पुतिन के कट्टर विरोधी और संभावित चुनौती देनेवाले एलेक्सी नवलनी की पिछले महीने आर्कटिक जेल में रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। कुछ विरोधी जेल में हैं। कुछ विरोधियों को विभिन्न कारणों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं थी इसलिए रशिया में पुतिनवाद का फिर से आना, यह तय था। पुतिन का संपूर्ण राज्य व्यवस्था, मीडिया और चुनावी व्यवस्था पर पूरा नियंत्रण था इसलिए दूसरे नतीजे की उम्मीद नहीं थी। कहने के लिए नवलनी की विधवा पत्नी यूलिया के आह्वान के बाद पुतिन के खिलाफ कुछ विरोध प्रदर्शन हुए। इसके खिलाफ ‘नून अगेंस्ट पुतिन’ संगठन के नाम से अभियान भी चलाया गया था। लेकिन चूंकि यह सिर्फ नाममात्र का था, इसलिए नतीजों में चमत्कार होने की कोई उम्मीद भी नहीं थी। अब अगले छह वर्षों के लिए रशिया एक बार फिर पुतिन के फौलादी पंजों में जकड़ा रहेगा। जैसी कि उम्मीद थी, पुतिन ने इसे लोकतंत्र की जीत कहा है। उन्होंने रशिया के एक लोकतांत्रिक राष्ट्र होने का दावा भी किया है। इस दावे पर खुद पुतिन और उनके अंधभक्तों के अलावा दुनियाभर में कोई भी यकीन नहीं करेगा। लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही लागू करनेवाला हर तानाशाह यह दिखावा और नाहक शोरगुल करता है। करता ही रहता है। हमारे देश में क्या अलग तस्वीर है! पिछले १० वर्षों से मोदीशाही तानाशाही का ही दूसरा अवतार है। मोदी राज में भी केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए विपक्षियों और आलोचकों पर अत्याचार किया जा रहा है। विभिन्न जांचों के जरिए राजनीतिक विरोधियों को या तो जेल में डाल दिया जा रहा है या उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मीडिया पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर अंकुश लगाए जाने की कोशिश की जा रही है। साम, दाम, दंड, भेद और खोकेशाही के जरिए विपक्षी दलों की सरकारें गिराई जा रही हैं। तोड़-फोड़ कर विपक्षी दलों को जर्जर करने का काम व भारत को भी रशिया की दिशा में ले जाने का काम सत्तारूढ़ दल बेरोक-टोक कर रहा है। एक ओर धार्मिक और झूठे राष्ट्रवाद का सम्मोहन और दूसरी तरफ लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही की भट्ठी जैसी है हमारे देश की मौजूदा तस्वीर। पुतिन की लगातार पांचवीं जीत का आत्मविश्वास और हमारे शासकों का ‘चार सौ पार’ का भौकाल। ये तानाशाही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वहां पुतिनशाही और यहां मोदीशाही बस इतना ही अंतर है। रशिया के विघटन के बाद इस साल रिकॉर्ड ७७ फीसदी वोटिंग हुई, पुतिन समर्थक ‘लोकतंत्र’ का हवाला देकर ढोल पीट रहे हैं। हमारे यहां बजाए जानेवाले ‘फिर एक बार’ के नगाड़े इससे कहां अलग हैं? पुतिन अपना पांचवां कार्यकाल पूरा करके जोसेफ स्टालिन से भी लंबे समय तक रूस के राष्ट्रपति बने रहने की होड़ में हैं। हमारे यहां भी तीसरे कार्यकाल का दिवास्वप्न देखा जा रहा है और फिर ये सब लोकतंत्र के नाम पर और देश बचाने का हौवा तैयार किया जा रहा है। रशिया में तानाशाही आ ही चुकी है। सवाल भारत को इस भयानक खतरे से बचाने का है। खुशनसीबी यही है कि भारतीय मतदाताओं ने इस खतरे को पहचान लिया है। जो रशिया में हुआ वह भारत में होने की संभावना नहीं है। इसलिए दस साल तक लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे छुपी मोदीशाही को इस लोकसभा चुनाव में ‘चले जाओ’ का शंखनाद सुनना पड़ेगा यह निश्चित है। पुतिन की जीत से फूले नहीं समा रहे अंध भक्तों सावधान!

अन्य समाचार