मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश :  दर-दर की ठोकरों के बाद उल्हासनगर में मिली मंजिल

मेहनतकश :  दर-दर की ठोकरों के बाद उल्हासनगर में मिली मंजिल

अनिल मिश्र

उल्हासनगर को भले ही कोई कुछ भी कहे, लेकिन विवेक श्रीवास्तव कहते हैं कि मुंबई में कई जगहों पर घूमने और अच्छे-बुरे अनुभवों को लेते हुए मैं उल्हासनगर आया। उल्हासनगर ने उनके जीवन को कुछ इस तरह बदला कि उनकी पारिवारिक जीवनशैली बदल गई।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के हड़िया तहसील के कसवा सीतावनपुर के मूल निवासी विवेक श्रीवास्तव के पिता स्व. बनारसीलाल श्रीवास्तव कालबा देवी में पान की दुकान चलाते थे। घर में खेती-बाड़ी का काम उनके चाचा देखते थे। घर की स्थिति बहुत अच्छी न होने के कारण विवेक घर की स्थिति को बेहतर बनाने के उद्देश्य से १९९६ में दसवीं की परीक्षा देने के बाद अपने पिता के पास मुंबई चले आए। दो वर्षों तक एक सुनार के पास उन्होंने साढ़े सात सौ रुपए के मेहनताने पर काम किया। विवेक के पिता अकेले पान की दुकान को संभालते हुए जब थक जाते तो विवेक दुकान पर बैठने लगे। विवेक के दुकान पर बैठने से पिता को सहयोग मिलने लगा। इसके बाद विवेक की मां सहित उनके भाई-बहन सभी मुंबई आ गए। मुंबई में उनके पास रहने के लिए घर नहीं था। अत: दुकान बंद होने के बाद सभी फुटपाथ पर सोते थे। विवेक के पिता के एक दोस्त ने जब उनकी ये स्थिति देखी तो उसने कांदिवली की पहाड़ी पर घेरकर रखे दो घर की जगह में से एक घर की जगह विवेक के पिता को दे दिया। दोस्त के कहने पर एक घर की जगह में मिट्टी भरकर रहने योग्य झोपड़ा बनाते ही दोस्त की नीयत बदल गई और पिता का दोस्त अपनी बात से मुकर गया। उसके बाद मालाड में भाड़े का रूम लिया, जहां महिंद्रा कंपनी ने आंसू गैस छोड़ने के साथ ही पुलिस बल का प्रयोग किया। उस घर को छोड़कर परिवार नालासोपारा आ गया। वहां घर मालिक दो दिन बाद ही रूम को किसी और को अधिक भाड़े पर देना है कहकर उन्हें भटकाता रहा। विवेक बताते हैं कि आखिर में उनकी मुलाकात सोसायटी चाय के मालिक से हो गई। उनके साथ विवेक उल्हासनगर आ गए। वहां पर उन्होंने ८ वर्षों तक वॉचमैन की नौकरी की। वॉचमैन की नौकरी देते समय मालिक ने घर भी दिया था। उसमें लाइट-पानी की नि:शुल्क सुविधा दी गई थी। वॉचमैन की नौकरी करते हुए लाइट बनाने के साथ ही प्लंबर का भी काम सीखा। गाड़ी चलाने का लाइसेंस बनवाने के साथ ही एक चार पहिया गाड़ी भी खरीद ली। कुछ दिन उसे चलाने के बाद गाड़ी को भाड़े पर चलाने के लिए दे दिया। २०१८ से विवेक कांबा गांव कल्याण ग्रामीण में रिवर ओ डेक इस ओपन शादी के हॉल में मैनेजर के पद पर हैं। नानिक मखीजा व राहुल मखीजा पहले भागीदार थे, परंतु अब केवल नानिक ही एकमात्र मालिक हैं। मेहनती मैनेजर की मेहनत के चलते हॉल की बुकिंग बढ़ जाने से विवेक मालिक के प्रिय बन गए हैं। २०१३ में पिता का साया उठ जाने के बाद विवेक अपने भाई-बहनों को सम्मानजनक स्थान पर ले आए। विवेक श्रीवास्तव कहते हैं कि दर-दर की ठोकरों के बाद अंतत: उल्हासनगर ने उनका जीवन बदल दिया।

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