शब्द उठाकर इधर-उधर फेंकने से बेहतर है
ठिकाने पर फेंको, जहां पहुंचकर वह
निभाए अपनी भूमिका
जगाने की उठाने की
और दौड़ाने की आत्म खोज के साथ
और बना दे एक मुकम्मल आदमी
जो कर सके परिवर्तन
पूरे समाज में खुद अपने शब्दों से
जिन्हें वह प्राप्त करता है
सामाजिक द्वंद्व से और आत्म चिंतन से भी ।
-अन्वेषी