मुख्यपृष्ठस्तंभकेजरीवाल की गिरफ्तारी से फंस गई बीजेपी?

केजरीवाल की गिरफ्तारी से फंस गई बीजेपी?

योगेश कुमार सोनी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद देश में सियासी माहौल बहुत गर्म हो चुका है। जैसे ही लोकसभा चुनाव की तारीख तय हुई, वैसे ही पक्ष-विपक्ष सीटों की घोषणा में लगा हुआ था, लेकिन बीते गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी से देश की राजनीति का माहौल बिल्कुल बदल गया। बीते शुक्रवार को आबकारी घोटाला मामले में राउज एवेन्यू कोर्ट ने केजरीवाल को २८ मार्च तक की रिमांड पर भेज दिया। उन्हें स्पेशल जज कावेरी बावेजा की अदालत में राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया गया था, जहां प्रवर्तन निदेशालय ने उनकी दस दिन की हिरासत की मांग की थी। तीन घंटे तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने अपना पैâसला सुरक्षित रख लिया था, लेकिन बाद में अदालत ने अपने पैâसले में केजरीवाल को २८ मार्च तक की रिमांड पर भेज दिया। ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे एएसजी एसवी राजू ने अदालत को बताया कि एजेंसी ने पीएमएलए की धारा १९ के तहत आवश्यकताओं का अनुपालन किया है। उन्होंने कहा कि उनके रिश्तेदारों को सूचित कर दिया गया है और रिमांड आवेदन की प्रति उन्हें दे दी गई है। ऐसा पहली बार हुआ है कि पद रहते हुए कोई मुख्यमंत्री गिरफ्तार हुआ है। इससे पहले इसी वर्ष जनवरी में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्होंने गिरफ्तारी से पहले पद से इस्तीफा दे दिया था। अब सवाल यह है कि आखिर वैâसे संचालित होगी दिल्ली सरकार? पार्टी के अन्य तमाम नेताओं ने स्पष्ट कह दिया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही बने रहेंगे लेकिन जेल में रहते सरकार चलाना संभव है या नही, यह भी समझना होगा। दरअसल, १९५१ के जनप्रतिनिधि कानून में कहीं इसका जिक्र नहीं है कि जेल जाने पर किसी मुख्यमंत्री, सांसद, मंत्री या विधायक को इस्तीफा देना होगा। कानून के मुताबिक, किसी मुख्यमंत्री को तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है, जब उन्हें किसी मामले में दोषी ठहराया गया हो। जैसा कि अभी केवल गिरफ्तारी हुई है, अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है। यदि केजरीवाल दोषी करार नहीं भी पाए जाते तो भी वह लंबे समय तक जेल से सरकार नहीं चला सकते हैं, क्योंकि जेल में हर काम सिस्टम के साथ होता है। जेल कानून के अनुसार, जेल में बंद हर वैâदी को हफ्ते में दो बार अपने रिश्तेदार या दोस्तों से मिलने की इजाजत होती है। हर मुलाकात का समय भी आधे घंटे का होता है और स्पेशल केस में या व्यक्ति विशेष को सरकारी शक्तियां का प्रयोग करने का कोई भी अतिरिक्त अधिकार नहीं है। यदि किसी भी दस्तावेज पर साइन भी करना हो तो कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है। यहां समझ सकते हैं कि सरकार चलाने के लिए दिन में कितने दस्तावेजों पर साइन करने पड़ते हैं। तमाम दांव पेंचों से घिरा यह मामला दिल्ली सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
इसके अलावा अब यह समझना होगा कि केजरीवाल की गिरफ्तारी से बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान? पूरी दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसने राजनीति के हर रंग को देखा है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में इतिहास के आधार पर सत्ता पक्ष को ही नुकसान होता है। इसका उदाहरण हम १९७४ में हुए जेपी आंदोलन से समझ सकते हैं, जो भी नेता जुड़े और जेल से आने के बाद उन्हें सहानुभूति मिली और उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। आज भी सभी पार्टियां देश में बड़े स्तर पर भागीदारी निभा रही हैं। तो यह कहा जा सकता है कि यहां केजरीवाल को सहानुभूति मिली तो चुनाव के समीकरण बदल जाएंगे और बीजेपी को नुकसान होगा।

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