मुख्यपृष्ठग्लैमर‘ये अफसोस नहीं खुशी की बात है!’-मीनाक्षी शेषाद्रि

‘ये अफसोस नहीं खुशी की बात है!’-मीनाक्षी शेषाद्रि

फिल्म ‘पेंटर बाबू’ से फिल्मों में डेब्यू करनेवाली मीनाक्षी शेषाद्रि ने जब सुभाष घई की फिल्म ‘हीरो’ में बतौर हीरोइन काम किया तो वे रातों-रात स्टार बन गर्इं। अमिताभ बच्चन से लेकर गोविंदा तक के साथ काम करनेवाली मीनाक्षी १९९५ में हरीश मैसूरे के साथ अरेंज्ड मैरिज कर अमेरिका में सेटल हो गर्इं। पूरे २७ वर्षों बाद हिंदुस्थान लौटनेवाली मीनाक्षी इस वक्त एक फिल्म साइन कर चुकी हैं। पेश है, मीनाक्षी शेषाद्रि से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

 पूरे २७ वर्षों बाद अपने कमबैक को लेकर आप क्या सोचती हैं?
‘पेंटर बाबू’ और ‘हीरो’ मेरी यह दोनों फिल्में १९८३ में रिलीज हुई थीं और मुझे इनके ४ दशक पूरा होने की खुशी है। फिल्म ‘हीरो’ ने मुझे स्टारडम दिलाया और फिल्म ‘पेंटरबाबू’ से मैं लाइम लाइट में आई। जहां तक मुझे याद है राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘दामिनी’ और उसके बाद ‘घातक’ रिलीज हुई। मेरे करियर की यह आखिरी दो फिल्में थीं। १९९५ में मेरा विवाह हुआ। मेरी बेटी पढ़-लिखकर जॉब कर रही है और बेटे ने अपनी पढ़ाई अभी पूरी की है। जब मैं विवाह के बाद अमेरिका गई तब से ही मेरे मन में ये खयाल था कि एक पड़ाव पर पहुंचने के बाद मैं अपने देश में वापस आकर एक्टिंग करना चाहूंगी। यह आर्थिक जरूरत नहीं, बल्कि एक पैशन है और मैंने अपना पैशन अब पूरा करना चाहा। हालांकि, परिवार को छोड़कर मुंबई आना मेरे लिए आसान नहीं था। मेरे लिए यह बहुत बड़ा कदम था।

 हिंदुस्थान आने के बाद आपने क्या परिवर्तन महसूस किया?
यहां से अमेरिका जाते समय मन में यह खयाल आया था कि कभी न कभी मेरी वापसी यहां होगी। माधुरी दीक्षित जब अमेरिका में थीं उन्हें ‘यशराज फिल्म्स’ की तरफ से कॉल आया था, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। काम पाने के लिए मुझे खुद ही कुआं खोदना पड़ेगा इसलिए मैंने मेकर्स से मिलना-जुलना शुरू किया। शादी के बाद मेरा अचानक यूएस जाना कई लोगों के लिए शॉकिंग रहा। अमेरिका में रहते हुए भारतीय मूल्यों और परिवेश में बच्चों को बड़ा करना मेरे लिए आसान नहीं था। उनकी परवरिश में २७ वर्ष निकल गए। बच्चों को दिए गए २७ वर्ष मेरे लिए अफसोस नहीं खुशी की बात है।

नेपोटिज्म पर आपका क्या कहना है?
अगर फिल्म इंडस्ट्री के एक्टर-डायरेक्टर के बच्चों में टैलेंट है और ऑडियंस उन्हें पसंद करती है तो क्यों नहीं वो इंडस्ट्री में अपने पैर जमा सकते? अक्सर बच्चे वही करना पसंद करते है जो उनके माता-पिता करते हैं। मेरे दोनों बच्चों को डांस और म्यूजिक में रुचि है। मेरा बेटा मुझसे मजाक में कहता है, ‘अम्मा, मुझे कब लॉन्च करोगी?’

 आप किस तरह के रोल करना चाहती हैं?
मैं किस तरह के किरदार निभाना चाहती हूं इसकी कोई परिभाषा नहीं है। मैंने एक प्रोजेक्ट साइन कर लिया है, लेकिन उसके बारे में अभी कुछ कह नहीं सकती। बहुत जल्द उसकी अनाउंसमेंट होगी। अब इंडस्ट्री के साथ ही कहानियां और किरदार बदले हैं। ऐसे किरदार जो मेरी आवाज बन सके। अभी तो मैं कोरी स्लेट हूं। देखते हैं मेकर्स मुझे किस तरह के किरदार ऑफर करते हैं।

 क्या आपके करियर को शिखर पर ले जानेवाले सुभाष घई और राजकुमार संतोषी से आपने संपर्क किया?
अमेरिका में जीवन की आपाधापी की वजह से मैं बॉलीवुड के मेकर्स और कलाकारों से संपर्क नहीं रख पाई। अब जब यहां काम करने के इरादे से लौटी हूं तो संतोषी जी और घई साहब सहित सभी से मैंने मुलाकात की। एक अच्छे को-एक्टर सहृदय इंसान जैकी श्रॉफ से भी मिलना हुआ।

 किन बदलावों को आप यहां महसूस करती हैं?
सबसे बड़ा और सुखद बदलाव वैनिटी वैन का है। मेरे दौर में वैनिटी वैन नहीं थी। धूप और धूल में शूटिंग के बाद ड्रेस चेंज करने की कोई प्रॉपर सुविधा नहीं थी। ‘फिल्मसिटी’, ‘फिल्मिस्तान’, ‘कमालिस्तान’, ‘नटराज’ सहित हर स्टूडियो के मेकअप रूम गंदे और घिनौने थे। अफसोस, मेरे दौर में कुछ नहीं बदला। भगवान ने बड़ी देर बाद सुनी लेकिन सुनी तो सही। इस दौर की अभिनेत्रियों के लिए बड़ा सुविधाजनक हुआ है वैनिटी वैन का होना। फिल्म इंडस्ट्री का पूरा ढांचा ही बदल गया है।

 ओटीटी के लिए आप कितनी तैयार हैं?
मैं नेगेटिव किरदार करूंगी या नहीं यह तो किरदार ऑफर होने पर निर्भर करता है। अभी से मैं वैâसे बताऊं? पॉजिटिव-नेगेटिव का कॉम्बिनेशन करने के साथ ही ग्रे शेड्स पर भी सोच सकती हूं।

 एक अच्छी डांसर होने के बावजूद आपको आइटम डांस का मौका नहीं मिला?
मेरे दौर में आइटम डांस काफी प्रचलित रहा। यह सच्चाई है कि आइटम डांस से लीड एक्ट्रेस की लोकप्रियता बेहद बढ़ती है। हूक डांस स्टेप, कॉस्ट्यूम, हिट डांस नंबर जैसी कई बातों को मिलाकर एक पैकेज बनता है, जिसमें विविधता होती है। मुझे कभी कोई आइटम नंबर ही ऑफर नहीं किया गया। मैंने हमेशा गरिमा के साथ अपनी शर्तों पर फिल्में की।

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