फ्री में कई टेस्ट भी कराते हैं
कुछ में दिलाते हैं ५० फीसदी तक डिस्काउंट
धीरेंद्र उपाध्याय
आज के दौर में अगर हम ये कहें कि एक डॉक्टर जो न सिर्फ मरीजों को बिना फीस लिए देखता है, बल्कि दवाओं के साथ ही कई टेस्ट प्रâी में करवाने की कोशिश भी करता है, तो शायद ये बात किसी को हजम न हो। लेकिन ये सत्य है और मुंबई में डॉ. निर्मल सूर्या ये काम नि:स्वार्थ भाव से वर्षों से करते आ रहे हैं। कुल मिलाकर, डॉ. सूर्या मिर्गी के मरीजों के लिए न केवल भगवान हैं, बल्कि वे मरीजों का मुफ्त में इलाज करने के साथ दवाएं भी मुफ्त देते हैं। कई टेस्ट प्रâी में, जबकि कुछ में ५० फीसदी तक का डिस्काउंट तक दिला देते हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. निर्मल सूर्या का कहना है कि कोविड से पहले सूर्या न्यूरो सेंटर में मिर्गी के १०० मरीज इलाज के लिए आते थे, लेकिन कोविड के बाद मरीजों के आने की तादाद कम हो गई। इस समय सेंटर में ५० मरीज इलाज कराने के लिए आ रहे हैं। फाउंडेशन की स्थापना के बाद से अब तक हजारों मरीज आ चुके हैं। कई मरीज ठीक भी हो चुके हैं। कुछ ऐसे लोग हैं, जो काफी लंबे समय से आ रहे हैं। कुछ ठीक हुए मरीज आने बंद हो गए हैं। कोविड में यूपी, बिहार जैसे राज्यों के बहुत सारे लोग जो मुंबई में अस्थाई तौर पर रहते थे, अपने पैतृक गांव में जाकर बस चुके हैं। इसका मुख्य कारण उनके सामने वित्तीय दिक्कतें हो सकती हैं। कई लोगों को लंबे समय तक दवाएं लेनी पड़ती हैं। कुछ लोगों की दवा बंद भी हो जाती है। आज हमारे पास तीन से चार हजार मरीज पंजीकृत हैं। इन सभी का बाकायदा पेपर रहता है। हर सप्ताह एक से दो नए मरीज इलाज करवाने के लिए आते हैं।
२०११ के बाद हमने राज्य सरकार के साथ पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में एपिलेप्सी को लेकर अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत अब तक १०६ वैंâप किए जा चुके हैं। आखिरी वैंâप भंडारा और गढ़चिरौली में आयोजित किया गया था। इन १०६ वैंâपों के माध्यम से हमने राज्य में करीब साढ़े पैंतीस हजार लोगों की स्क्रीनिंग की है। उनमें से भी कई सारे लोग अभी भी हमारे पास इलाज कराने के लिए आते हैं और दिखा के वापस लौट जाते हैं। हम उन्हें पेसेंट थेरेपी देते हैं, जिसमें दवा के अलावा उनको हर सप्ताह ब्रेन ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसके साथ ही योगा भी होता है। इस बीच किसी मरीज को चलने में दिक्कत होती है या ट्रेनिंग नहीं दी जा सकती है, तो ऐसी स्थिति में हम उन्हें ऑक्यूपेशन थेरेपी देते हैं। प्रत्येक मरीज की हर तीन महीने में काउंसलिंग होता है। ये सारे ट्रीटमेंट रेगुलर चलते रहते हैं।
इस तरह से सूझी मुफ्त इलाज की बात
१९९५ में जब मैं कोठारी अस्पताल में प्रैक्टिस कर रहा था। उस समय मेरे पास एक महिला पेसेंट आई, जो यंग गर्ल थी। उसने बताया कि शादी करके जब वह अपने ससुराल में पहुंची तो उसे मिर्गी का दौरा पड़ा, जिससे ससुरालवालों ने उसे छोड़ दिया। इलाज के बारे में उसने बताया कि डॉक्टर साहब मैं फीस और दवा के खर्च नहीं उठा सकती हूं। उस समय मेरे मन में इस तरह के गरीब और मजलूम मरीजों का मुफ्त में इलाज करने की बात सूझी। साथ ही मैंने कोठारी अस्पताल प्रशासन से बात की कि हमें ऐसे लोगों के लिए नि:शुल्क ओपीडी शुरू करने की जरूरत है। इससे जो मरीज डॉक्टरों की फीस और दवाइयों का खर्च नहीं उठा सकते हैं, उनकी मदद की जा सकती है। उस समय कोठारी अस्पताल के डॉ. एमएच शाह ने कहा कि मंगलवार को इस तरह की पहल को शुरू किया जा सकता है। इसके बाद हमने मंगलवार को दोपहर में १२ बजे नि:शुल्क ओपीडी की शुरुआत की। इसके बाद हमने एक-दो कंपनी प्रबंधन से बात करते हुए दवाइयां भी उपलब्ध करा ली।
मेरे कामों को देख मिलने बुलाती थीं मदर टेरेसा
मुंबई में आने के बाद मदर टेरेसा मुझे बुलाती थीं, क्योंकि जब मैं बोरिवली में प्रैक्टिस करता था, तब उनके यहां से आशा नाम से जो भी मरीज आते थे, उनका मैं निशुल्क इलाज करता था। साल १९९५-९६ में सांताक्रुज में स्थित स्कूल में उनसे आखिरी मुलाकात हुई थी। दुनिया छोड़ने से पहले उन्होंने कहा था कि सूर्या मैं एचआईवी सेंटर चालू करना चाहती हूं। वह सेंटर आपको ही देखना है, तब मैंने कहा था कि यदि आप कहेंगी तो जरूर उस सेंटर को देखूंगा। हालांकि उनके देहांत के बाद एचआईवी सेंटर वाला किस्सा वहीं समाप्त हो गया।
मुंबई अस्पताल के पास शुरू किया टेस्ट और इलाज
साल २००० में मैं मुंबई अस्पताल में शिफ्ट हुआ, तब कोठारी अस्पताल में मैंने महसूस किया कि यहां कार्यरत चिकित्सक मरीजों को अपनी सेवाएं नि:शुल्क दे रहे हैं, लेकिन बाकी सारे टेस्ट नार्मल कॉस्ट पर हो रहे हैं। इसे भी गरीब मरीज झेल नहीं पा रहे हैं। इसे देखते हुए मैंने मुंबई अस्पताल में पहल करते यहां ओपीडी शुरू कर दिया। परोपकार के काम करने के बाद भी मुझे आलोचनाएं झेलनी पड़ी। मेरे करीबी मित्रों ने मुझसे कहा कि आप एक एनजीओ बनाओ और उसके माध्यम से आप परोपकार का यह काम करो। इसके बाद हमने साल २००९ में एपिलेप्सी फाउंडेशन बनाया। साथ ही सूर्या न्यूरो सेंटर भी शुरू किया। फाउंडेशन बनाने के बाद हम धीरे-धीरे काम आगे बढ़ते गए, एक के बाद एक अवेयरनेस प्रोग्राम और हर साल कुछ न कुछ करते गए।
मैराथन के जरिए मिलने लगा फंड
साल २०१७ में समाजसेवियों और मैराथन के माध्यम से फाउंडेशन को फंड मिलने लगा। आज परिस्थिति ऐसी है कि काफी सारे कामों की शुरुआत हो गई है। सेंटर में सात-आठ लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। कई मरीज इलाज कराते हुए खुद ही फाउंडेशन से जुड़कर काम करने लगे हैं। इससे उनकी मिर्गी की दिक्कतें भी कम होने लगीं।
प्रदेश में स्थापित होंगे नौ एपिलेप्सी सेंटर
राज्य सरकार की तरफ से तीन महीनों की दवाएं नि:शुल्क मिलती हैं। इसके बाद हमने राज्य सरकार को एक प्रस्ताव सुझाया था, जिस पर सरकार ने सकारात्मक भूमिका अपनाते हुए उसे मंजूर कर लिया है। हालांकि, बीच में कोरोना महामारी आने के कारण थम गया था, जिसे अब गति मिलनी शुरू हो गई है। महाराष्ट्र में नौ सर्कल हैं। इस प्रस्ताव के तहत प्रदेश के हर सर्कल में एक एपिलेप्सी सेंटर स्थापित किया जाएगा। ऐसे में हमारे वैंâपों में मिर्गी की पुष्टि होने के बाद मरीज इन एपिलेप्सी सेंटर में आगे का इलाज करा सकेंगे। यहां मंथली मेडिसिन मिलेगी, यहां एक न्यूरोलॉजिस्ट कार्यरत रहेगा, ईईजी मशीन होगी। ये पूरा सेटअप तैयार हो गया है। अनुमान है कि साल के अंत तक ये एपिलेप्सी सेंटर शुरू हो जाएंगे।
जन जागरूकता की कमी
एपिलेप्सी को लेकर लोगों में जागरूकता की भारी कमी है। हम महाराष्ट्र में जाकर जनजागरण चलाते हैं और लोगों को डूज-डॉन्ट ब्रोशर देते हैं। हम पहले स्ट्रीट प्ले का टीम लेकर जाते थे, जो पूरे राज्य में पांच-छह शहरों में पहुंचकर नुक्कड़ नाटक करती थी, जिसमें बीमारी और वैंâप के बारे में जानकारी दी जाती थी। इसके साथ ही हमारे कई सारे प्रोग्राम होते हैं, जैसे २६ मार्च को पर्पल डे है, १७ नवंबर को एपिलेप्सी डे है, मैराथन में हम सभी ३००-४०० लोग साथ में मिलकर लोगों को एपिलेप्सी को लेकर जागरूक करते हैं। इसमें कहा जाता है कि यह मिर्गी की बीमारी है। दौरा पड़ने के बाद मरीज को प्याज अथवा जूता न लगाएं। ढोंगी बाबाओं के चक्कर में पड़ने की बजाय समय पर इलाज कराएं, लेकिन शिक्षित लोगों में भी अभी तक प्याज और जूता लगाने की मनोस्थिति है। इस प्रथा को जमीनी स्तर से समाप्त करने में बहुत समय लगेगा। हम प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन आम लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा।
चिप से दूर होगी मिर्गी
इस बीमारी में नई-नई दवाओं के ईजाद होने के अलावा एपिलेप्सी सर्जरी का भी एक बहुत ब़ड़ ा रोल है। दवा से ठीक होनेवाले ७० फीसदी के अलावा जो मरीज दवाइयों से ठीक नहीं हो रहे हैं, उन लोगों को भी घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसे मरीजों की सर्जरी हो सकती है, उनके लिए एक नया ट्रीटमेंट आया है। इसके तहत ब्रेन में एक चिप लगाया जाता है। यह ब्रेन में जहां फिट होता है, उस जगह को डिटेक्ट किया जाता है और वहां फिट किया जाता है। इसको हम आरएनएस कहते हैं। कुल मिलाकर इलाज में नई-नई तकनीकें आ रही हैं। धीरे-धीरे हिंदुस्थान में भी आ जाएंगी, क्योंकि अभी उनका
कॉस्ट बहुत हाई है।